Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
प्रर्ण-जैसे महाशज्यकरि अनुबिद्ध पुरुषकै सुख कहांतें होय ? तैसें समस्त आपदानिका निधान जो मिथ्यात्व ताकरि अनुबिद्ध पुरुष के सुख काहेतें होय है ? नांहीं होय है ॥२३॥
षोढानायतनं जन्तोः, सेवमानस्य दुःखदं । अपथ्यमिव रोगित्वं, मिथ्यात्वं परिवद्धते ॥२४॥
अर्थ-जैसे अपथ्यकौं सेवन करते के रोगीपना बढ़ है तैस दुःखदायक जो छह प्रकार अनायतन ताकू सेवता जो पुरुष ताकें मिथ्यात्व बढ़े है ॥२४॥
मिथ्यादर्शनविज्ञान, चारित्रैः सहभाषिताः । तदाधारजनाः पापाः, षोढाऽनायतनं जिनः ॥२५॥
अर्थ-मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र इन तीननि करि सहित पापरूप तिन मिथ्यादर्शनादिकके आधार मनुष्य ऐसे छह प्रकार अनायतन जिनदेवनि करि कहे हैं।
भावार्थ-मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र ये तीन; अर तिनके धारक पुरुष तीन, ऐसें छह अनायतन जानना । आयतन नाम ठिकाने का है सो ये धर्म के ठिकाने नांहीं तातें अनायतन कहे हैं ॥२५॥
एकैकं न त्रयो द्वे दे, रोचन्ते न परे त्रयः । एकस्त्रीणोति जायन्ते, सप्ताप्येरो कुदर्शनाः ॥२६॥
अर्थ-तीन तो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रविर्षे एककौंन मानें हैं। अर और तीन मिथ्यादृष्टि दोयकौं न माने हैं। बहुरि एक तीननकौं न जाने है ऐसें ये सात मिथ्यादृष्टि होय हैं ॥२६॥
दवीयः कुरुते स्थानं, मिथ्यारष्टिरमीप्सितम् ।
अन्यत्र गमकारीव, घोरैमुक्तो बतैरपि ॥२७॥
अर्ण-घोर ब्रतनि करि सहित भी मिथ्यादृष्टि वांछित स्थानकौं अन्य स्थान जानेवालेकी ज्यौं अतिदूर कर है। .