Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम परिच्छेद
[१७५
अर्थ-दया करि भोज्या है चित्त जाका अर जिनेन्द्रके वचननिका जाननेवाला ऐसा जो पुरुष कछ भी सचित्तकौं न खाय है सो औरके समान नाहीं, ऐसे असाधरण धर्मका पुष्ट करनेवाला कषायरहित सचित्तत्यागी कह्या है ॥७१॥
आगें रात्रिभोजनका त्याग वा दिनमैं अब्रह्म त्याग प्रतिमाकौं
निषेवते यो दिवसे न नारी-मुद्दामकन्दर्पमदापसारी। कटाक्षविक्षेपशरीरविद्धो, बुधैर्दिन ब्रह्मचरः स बुद्धः ॥७१॥
अर्थ-जो पुरुष तीव्र कामके मदका दूर करनेवाला दिवस विर्षे नारीकौं न सेवै है, सो पंडितनि करि स्त्री कटाक्षका चलावना रूप वाणनि करि नाहीं वींध्या दिन विषं तो ब्रह्मचारी कह्या है। दिन विष तो स्त्रीका न सेवना सो दिन ब्रह्मचारी है वा यहु रात्रिभोजनका भी त्यागी है, तातें याहीका नाम रात्रिभोजन त्यागी भी कह्या है; ऐसा जानना ॥७२॥ आगें ब्रह्मचर्य प्रतिमाकौं कहैं हैं :--
यो मन्यमानो गुणरत्नचौरी, विरक्तचित्तस्त्रीविधेन नारीम् । पवित्रचारित्रपदानुसारी,
स ब्रह्मचारी विषयापहारी ॥७३॥ अर्थ-जे विरक्त पुरुष स्त्रीकौं मन, वचन, काय करि गुणरत्नकी चोरनेवाली मानता सन्ता पवित्र चरित्रके पदका अनुसारी विषयनका त्यागी सो ब्रह्मचारी कह्या है ॥७३॥
आगै आरम्भ त्याग प्रतिमाकौं कहै हैं :-- विलोक्य षङ्गीवविघातमुच्चरारम्भमत्यस्यति यो विवेकी । प्रारम्भमुक्त्तः स मतो मुनीन्द्रवि रागिक: संयमवृक्षसेकी ॥७४॥
अर्थ-अतिशयकरि षट्कायिक जीवनि घात देखक जो विवेकी । आरम्भकौं त्याग है सो मुनींद्रनिकरि आरम्भ रहित कहा है, कैसा है सो विरागी संयम वृक्षका सींचनेवाला है ।।७४।।