Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार |
कालापेक्षव्यतिक्रांति, व्याक्षेपा उक्तवित्तता । लोमाकुलितचित्तत्वं, पापकार्योद्यमः परः ॥६७॥
कृत्याकृत्यविमूढत्वं, द्वात्रिंशदिति सर्वथा ।
कायोत्सर्गविधेर्दोषास्त्या ज्या निर्जरणार्थिभिः ॥ ६८ ॥
अर्थ - घोड़े की ज्यौं एक पांव उठाय करि खड़े रहना सो घोटक दोष है, १ - बहुरि पवनकरि हली जो लता वाकी ज्यौं सर्व तरफ चलना सो लता दोष है, २ - बहुरि थम्भभीत आदिका आसरा लेना सा स्तम्भकुड्य दोष है, ३ - बहुरि पाट आदिके ऊपर तिष्ट करि कायोत्सर्ग करें सो पट्टिका दोष है, ४ - बहुरि सिरके ऊपर माताकौं अवलम्बकें तिष्टना सो माला दोष है ।
५- बहुरि बेडीकरि बन्धे पुरुषकी ज्यौं टेढे चरण धारि तिष्टना सो निगड दोष है, ६ - बहुरि भीलकी स्त्रीकी ज्यौं हाथन करि जंघानकौं ढांपना सो किरात युवति दोष है, ६- बहुरि शिरकौं नमाय करि तिष्टना सो शिरोनमन दोष है, ८- बहुरि ऊँचा शिर करकै तिष्टना सो उन्नमन दोष है, ६ - बहुरि बालककौं धायके स्तनकी ज्यों छातीकौं ऊँची करके तिष्टना सो धात्री दोष है ।
१०- बहुरि कागलाकी ज्यौं चचंल नेत्रका सवं तरफ पसवाडेनका देखना सो वायस दोष है, ११ - बहुरि लगाम करि पीडित घोडेकी ज्यौं ऊपर नीचें मस्तकका नमावंना सो खलीन दोष हैं, १२ - बहुरि कंधापर आरूढ है पुरुष जाकै ऐसे गजगी ज्यौं ग्रीवाका नमावना ऊँचा करना सो गज दोष है वा याहीका नाम युग दोष है, १३ - बहुरि कैंथ सहित हस्तकी ज्यौं मूठी बंधन करनेवालेके सो कपित्थ दोष है. १४ - बहुरि सिरका कंपावना सो शिरः प्रकंपित दोष है ।
१५ - बहुरि गूगेकी ज्यौं नासिकादि अंगनिकी सैनानी करनेवालेकै दोष है, १६ - बहुरि कायोत्सर्गमैं भृकुटी नचावना आदि करै सो दोष
मूक
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