Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 379
________________ ३६४] श्री अमितगति श्रावकाचार यानि पंचनमस्कारपददादीनि मनीषिणा। पदस्थं ध्यातुकामेन तानि ध्येयानि तत्वतः । ३१॥ अर्थ-जे पंचनमस्कारपद आदि अक्षरनिके समूह रूप पद हैं ते पदस्थ ध्यावनेका वांछक जो बुद्धिमान पुरुष ताकरि निश्चयतें ध्यावने योग्य है। भावार्थ-पदस्थमैं पंचनमस्कार मंत्र आदि पद ध्यावना ॥३१॥ आगे मंत्रनिका विधान कहे हैंमरुत्सशिखो वर्णो भूतांतः शशि शेखरः । आद्यध्वादिको ज्ञात्वा ध्यातुः पापं निषूदते ॥३२॥ स्थितो ऽ सि उ सा मन्त्रश्चतुष्पत्रे कृशेशये । ध्यायमानः प्रयत्नेन कर्मोन्मू नयतेऽखि नम् ॥३३॥ तन्नाभौ हृदये वक़ ललाटे मस्तके स्थितम् । गुरुप्रसादतो बुद्ध वा चिन्तनीयं कृशेशयम् ॥३४॥ अयुयवित्यमी वर्णाः स्थिताः पद्म चतुर्दले। विश्राणयंति पंचापि सम्यग्ज्ञानानि चिन्तिताः ॥३५ । स्थितपंचनमस्काररत्नत्रयपदैर्दलैः । अष्टभिः कलिते पद्म स्वरकेसरराजिते ॥३६ । ह्रीं ॐ ह्रीं ॐ hcho यंत्र 8 .. * अ इ उ य उ ।

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