Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 382
________________ पंचदश परिच्छेद [ ३६७ आदि वर्णन किया सो वाका अर्थ हमकौं यथार्थ सर्व प्रतिभास्या नाहीं तातें न लिख्या है, विशेष बुद्धि जिनकौं मन्त्र शास्त्रका ज्ञान होय ते यथार्थ समझ लीज्यो। अभिधेया नमस्कारपर्देय परमेष्ठिनः । पदस्थास्ते विधीयंते, शब्देऽर्थस्य व्यवस्थितेः ॥४६॥ अर्थ-जे अर्हतादि परमेष्ठी नमस्कार पदनिकरि कहने योग्य हैं ते पदस्थ कहिए है, जातै शब्द विर्षे पदार्थकी व्यवस्थिति है। भावार्थ-शब्दके अर अर्थके वाच्यवाचक भाव सम्बन्ध है, तातें शब्द मैं अर्थ तिष्ठै है इस हेतुते नमस्कार आदि शब्दनिके ध्यानकौं पदस्थ कह्या है ॥४६॥ आगें पिंडस्थ ध्यानकौं कहैं हैं .. अनंतदर्शनज्ञानसुखवीर्यैरलंकृतम् प्रातिहार्याष्टकोपेतं नरामरनमस्कृम् ॥५०॥ शुद्धस्फटिकसंकाशशरीरमुरुतेजसम् । घातिकर्मक्षयोत्पन्न नवकेवल लब्धिकम् ॥५१॥ विचित्रातिशयाधारं लब्ध कल्याणपंचकम् । स्थिरधीः साधुरहतं ध्यायत्येकाग्रमानसः ॥५२॥ अर्थ-स्थिर धी बुद्धि जाकी ऐसा एकाग्रचित्त साधु है सो अहंतदेवकौं ध्यावै है. कैसा है अहंत देव अनंतदर्शन अनंतज्ञान अनंतसुख अनंतवीर्य करि शोभित है । बहुरि अशोकवृक्ष पुष्पवृष्टि दिव्यध्वनि चमर सिंहासन भामंडल देवदुदुभि छत्र इनि अष्ट प्रातिहार्यनिकरी युक्त है। बहुरि मनुष्य देवनिकरि किया है नमस्कार जाकौं ऐसा है । बहुरि निर्मल स्फटिकमणि समान है परमौदारिक शरीर जाका, बहुरि घातिकर्मके क्षयतें उपजी है नव केवल लब्धि जाकै, बहुरि नानाप्रकारके अतिशय कहिए जिनकौं देखि-लौकिक जीवनिके चित्तकौं आश्चर्य उपजै ऐसे

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