Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ – संसारमैं पडते भयभीत अर बाधा रहित अर मुक्तिपुरीके जानेंके इच्छुक ऐसे जे पुरुष तिनकरि मोक्षके अथि ध्यान विषें उद्यम करना योग्य है, जाते उपाय विना कार्यकी सिद्धि नाहीं । मोक्षका उपाय ध्यान ही है ॥ १०१ ॥
देहात्मनोरात्मवता
वियोगो,
मनः स्थिरीकृत्य तथा विचित्य: ।
३८० ]
हेतुर्भवानार्थ
परंपरायाः,
स्वप्नेऽपि योगो न यथाऽस्ति भूयः ॥ १०२ ॥
अर्थ - आत्मज्ञानी पुरुषकरि चित्तकौं थिर करकै देहका अर आत्माका वियोग कहिये निन्नपना तैसें चितवना योग्य है जैसैं संसार दुःखकी परंपराका कारण जो देहका संयोग सो स्वप्न विषें भी फेर न होय ॥ १०२ ॥ |
जानें |
निरस्तसर्वेन्द्रिय कार्यजातो,
यो देहकार्यं न करोति किंचित् । स्वात्मीय कार्योद्यतचित्तवृत्तिः,
स ध्यानकार्यं विदधाति धन्यः ॥१०३॥
अर्थ - नाश किया है स्पर्शनादि सर्व इन्द्रियनिके कार्यनिका समूह
भावार्थ - जानें स्पर्शादि विषयनिमैं इन्द्रियनिका राग सहित परिणमन रोक्या है । बहुरि अपने आत्माके कार्य विषें उद्यम सहित है चित्तकी परणति जाकी ऐसा जो धन्य पुरुष है सो ध्यानरूप कार्यकौं करै है ॥१०३॥
fasमानं
जगदंतराले,
धत्त न शक्यं मनुजामरेंद्र :
तन्मानसं यो विदधाति वश्यं,
ध्यानंस धीरो विदधात्यवश्यम् ॥ १०४ ॥
अर्थ- जो जगत विषें हीडता डोलता नरेन्द्र देवेंद्रनिकरिन।