Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 401
________________ ३८६] श्री अमितगति श्रावकाचार अर्थ-ता अमितगति मुनिका शिष्य श्री नेमिषेण आचार्य होता भया कैसा है सो पंडितनिके समूह करि पूजित है अनेक शिष्य जाके । बहुरि श्रीमाथुरसंप्रदायरूप आकाशविर्षे प्रकाश करने तें चन्द्रमा समान है, बहुरि सदा नाश करी है अहंतभाषित तत्त्वनि विर्षे शंका जानें ॥३॥ माधवसेनोऽजनि महानीयः, संयतनाथो जगति जमीयः । जीवनराशेरिव मणिराशी, स्म्यतमोऽतोऽखिलतिमिराशी ॥४॥ अर्थ-तिस नेमिसेनके पद विर्षे जगत विर्षे पूज्य संयमीनका नाथ श्री माधवसेन आचार्य प्रगट होता भया। कैसा है सो संसारी जीवनिका हितकारी है अर युन्दर रत्ननिकी राशि ज्यौं समस्त मिथ्याभावरूप अन्धकारका नाश करनेवाला ऐसा माधवसेन आचार्य भया ॥४॥ विजितनाकिनिकायमवज्ञया, जयति यो मदनं पुरुविक्रमम् । त्यजति मां किमयं परनाशघी, रिति कषायगणो विगतो यतः ॥५॥ प्रर्थ-जीत्या है देवनिका समूह जानें ऐसा महापराक्रमी जो काम ताहि तिरस्कार करि जो जीते है सो यहु आचार्य मौकों कैसे छोड़ेगा मौकौं भी जीतेगा। ऐसी विचारिकै जिस माधवसेन आचार्यतें कषायनिका समूह भगि गया, कैसा है कषायनिका समूह अन्य जीवननिके नाशवेकी है बुद्धि जाकै। भावार्थ-काम विकार जाका नशि गया ताके कोषादि कषाव भी नशि जाय हैं । परद्रव्यनिकी बांछा सहित जीवहीकों कषाय पीड़े है ऐसा जानना ॥५॥

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