Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार-..
अर्थ-कालकौं पूर्ण भये सन्ते निश्चय करि कोई भी पुरुष निकट आये जे देव तिन करि नाहीं रक्षिए है, बहरि तिन देवनिके अचेतन प्रतिबिम्बनि करि रक्षा मानिये सो यह बड़ा आश्चर्य है ।
___ भावार्थ-कोई मिथ्यादृष्टि कुदेवनिकी प्रतिमा बनाय तिनकै आगें अपना जीवना बांछे है तहां आचार्य कहैं हैं कि आयु पूर्ण भये साक्षात देव भी रक्षा न करि सके है तो तिनके अचेतन प्रतिबिंबनित जीवितव्य वांछना यह बड़े आश्चर्यकी बात है ॥६६॥
मांसं यच्छन्ति ये मूढा, ये च गृह्णति लोलुपाः । द्वये वसन्ति ते श्वभ्र, हिंसामार्गप्रवत्तिनः ॥६७॥
अर्थ-जे मूढ़ मांसकौं देय है अर जे लोलुपी मांसका ग्रहण करें हैं ते दोऊ हिंसा मार्गके प्रवर्त्तावनहारे नरक वि. वास करें हैं ॥६७॥
धर्मार्थ दवते मासं, ये नूनं मूढ़बुद्धयः । जिजीविषंति ते दीर्घ, कालकूटविषाशने ॥६॥
अर्थ- जे मूढ़बुद्धी धर्मके अर्थ मांसकौं देय है ते निश्चयकरि कालकूट विषकौं खाय करि जिये चाहैं हैं ॥६॥
तादृशं यच्छतां नास्ति, पापं दोषमजानताम् । यादृशं गृह्णन्तां मांस, जानतां दोषमूर्जितम् ॥६६॥
अर्थ-दोषके स्वरूपकौं न जानते ऐसे दानके देनेवाले तिनकौं तसा पाप नाही जैसा महापाप दोषकौं जानते जे मांसकौं ग्रहण करनेवाले तिनकौं है।
भावार्थ-कुदानका देनेवाला अज्ञानतें धर्म जानि दान देय है सो पापी तो है ही परन्तु जो जानकरि दोष सहित दान ग्रहण कर है सो ताहू ते महापापी है तातें भोले जीवतें जानिकै प्रपंच करै ताकै कषाय अधिक है, ऐसा जानना ॥६६॥ · · दाता दोषमजानानो, दत्त धर्मधियाऽखिलम् । ..
यः स्वीकरोति तद्दानं, पात्रं तत्र न सर्वथा ॥७॥