Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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अमितगति श्रावकाचार
अर्थ- ज्ञानदानके प्रसाद करि जीव है सो लोक विष उत्तम अर पूजित ऐसी मनुष्यनिकी अर देवनिकी लक्ष्मीको भोगकै मुक्तिकौं प्राप्त होय है ॥ ४८ ॥
चतुरंगं फलं येन दीयते शास्त्रदायिना | चतुरंगं फलं तेन लभ्यते न कथं स्वयम् ॥४६॥
अर्थ - जिस शास्त्र के देनेवाले पुरुष करि चतुरंग कहिए धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, ये च्यार पुरुषार्थरूप फल दीजिए है ताकरि धर्म, अर्थ, काम मोक्ष रूप फल स्वयमेव कैंसें न पाइए है ॥ ४६ ॥
शास्त्रदायी सतां पूज्यः सेवनीयो मनीषिणाम् । वादी वाग्मी कविर्मान्यः ख्यातशिक्षः प्रजायते ॥५०॥
श्रर्थं— शास्त्रकौं देनेवाला पुरुष संततिके पूजनीक होय है अर safe सेवन होय है, अर वादीनिकों जीतनेवाले हैं वचन जाके ऐसा वादी होय है, वहुरि वाग्मी कहिए सभाकौं रंजायमान करनेवाला वक्ता होय है, अर कवि कहिये नवीनग्रन्थ रचनावाला होय है, अर माननेयोग्य होय है, अर विख्यात है शिक्षा जाकी ऐसा होय है ॥ ५० ॥
ऐसे शास्त्रदानका वर्णन किया। आगे वसतिका दानकौं क है हैंविचित्ररत्ननिर्माणः प्रोत हो बहुभूमिकः । लभ्यते वासदानेन वासश्चन्द्रकरोज्ज्वलः ॥ ५१ ॥
अर्थ - वसतिका दान करि चन्द्रमाकी किरण समान उज्ज्वल विचित्ररत्न करि रच्या महाऊँचा बहुत खणनिका महल पाइये है ।
आगे वस्त्रदानकौं कहें हैं:
कोमलानि महार्घ्याणि विशालानि धनानि च ।
वासोदानेन वासांसि सम्पद्यन्ते सहस्रशः ॥ ५२ ॥