Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ - सम्यग्दर्शन ज्ञानादि च्यार कारण जो सुख देय हैं सो और कर्म सुख कैसें देया जैसें जो मित्र कार्य करै सो वेरी कदाच नाहीं करै ॥२०॥
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ये संति साधवो धन्याश्चतुरंगविभूषणाः । विधेयो विनयस्तषां मनोवाक्कायकर्मभिः ॥२१॥
अर्थ – जे धन्य साधु पुरुष दर्शन ज्ञान चारित्र तप ये च्यार अग ही है भूषण जिनके ऐसे हैं तिनका विनय मन वचन कायकरि करना योग्य है ॥२१॥
गुणनामनवहानां तदीयानामनारतम् ।
चितनीय पटोयोभिरूपबृ ंहणकारणम् ॥२२॥
- तिन साधूनके निर्मल गुणनिका निरंतर बुद्धिवाननिकरि चितवन करना योग्य है कैसा हैं साधूनके गुणका चितवन धर्म aढावका कारण है ॥२२॥
ध्यायतो योगिनां पथ्यमपथ्यप्रतिषेधनम् ।
मानसो विनयः साधोर्जायते सिद्धिसाधकः ॥ २३ ॥
अर्थ - योगीश्वरनका हितरूप अर अहितका निषेध करनेवाला कार्य ताहि ध्यावता जो पुरुष ता साधुकै मौक्षका साधक मानसिक विनय होय है ॥२३॥
यश्चितयति साधूनामनिष्टं दुष्टमानसः ।
सर्वानिष्टख निर्मूढो, जायते स भवे भवे ॥२४॥
अर्थ- जो दुष्ट साधुनका अनिष्ट विचारै सो मूढ़ सर्व अनिष्टनिकी खानि भव भव विषें होय है ||२४||
दुर्भगो विकलो मूर्खो, निविवेको नपुंसकाः । कोचकर्मकरो नीचो, याति दूषण चिंतक ॥। २५शा
अर्थ - यतीनके दूषणका चितवन करनेवाला पुरुष है सो दुर्भग होय है विकलांग होय है मूर्ख होय विवेक रहित होय नपुंसक होय नीच कर्मका करनेवाला नीच होय ||२५||