Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ – जे पुरुष साधूनिकी निन्दामैं तत्पर हैं ते इस भवमैं अर परभवमैं दूषित होय हैं, नाहीं आदरने योग्य है, वाणी जिनकी अर निन्दने योग्य अर क्लेश सहित अर शोकवान अर अज्ञानी ऐसे होय हैं ॥ ३१ ॥
किं चित्रमपरं तस्माद्यदौदासीन्यचेतसाम् ।
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वन्दका वंदितास्तेषां निन्दकाः सन्ति निंदिताः ॥३२॥
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अर्थ – जातें उदासीन है चित्त जिनका ऐसे साधूनके वंदनेवाले तसबनि करि बंदनीक होय हैं अर निंदक हैं ते निंदक होय हैं, तातें या मैं सिवाय आश्चर्य कहां है, किछू भी नाहीं ||३२||
आग - ऊपर दाष्टति कह्या ताका दृष्टान्त कहैं हैं-यादृशः क्रियते भाव:, फलं तत्रास्ति तादृशम् ।
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यादशं चर्यं ते रूपं तादृशं दृश्यतेऽब्दके ॥ ३३ ॥ अर्थ -- जैसा भाव करिए तहां तैसा फल होय है जैसे दर्पण में जैसा रूप करिए तैसा ही देखिए है ।
भावार्थ - साधु तौ वीतराग है तिनमें जैसा भक्ति रूप वा द्वेष रूप परिणाम करे तैसा ही शुभ अशुभ फल पावै । जैसें दर्णप तौ निर्मल है वामैं जैसा रूप करै तैसा ही दीखै ऐसा जानना ॥३३॥
व्रतिनां निन्दकं वाक्यं, विबुद्धयेति न सर्वदा ।
मनोवाक्काययोगेन वक्तव्य हितमिच्छता ॥ ३४ ॥
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अर्थ -- या प्रकार साधूनकी निंदामें महापाप जान करि हितका बांछक जो जीव ताकरि व्रतोनका निंदक मन वचन कायके योगकरि सदाकाल ही कहना योग्य नाहीं ||३४||
अभ्युत्थानासनत्यागप्रणिपातांजुलिक्रिया ।
श्रायाते संयते कार्या, यात्यनुव्रजनं पुनः ॥३५शा
अर्थ – संजमी मुनिका आगमन होत सन्तें उठना आसनका त्यागना नमस्कार करना अंजुलि क्रिया कहिए हाथ जोड़ना क्रिया करनी योग्य है, बहुरि संजमीकौं गमन करते सन्तें पीछें चालना योग्य है ||३५||