Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ-जिस मौन व्रत करि गृहस्थ भी यतिके संयमकौं प्राप्त कीजिए है तिस मौनके गुण कौन करि वर्णन करनेकौं समर्थ हूजिए है, अपितु नाहीं हूजिए है ॥१०॥
पोषेण विशता रोधः, कल्मषस्य विदीयते । बलिष्ठेन मपिष्ठेन, सलिलस्येव सेतुना ॥१०६॥
अर्थ-जैसे बलवान अर बड़ा जो सेतु कहिए पाल ताकरि जलका रोध करिए तैसें प्रवेश करता जो पाप ताका रोध मौनकरि कीजिए है ॥१०६॥
हुंकारांगुलिखात्कारभ्र मूर्द्ध चलनादिभिः । मौनं विदधता संज्ञा, विधातव्या न गृद्धये ॥१०७॥
अर्थ-मोनकौं धारता जो पुरुष ताकरि हकार करना अंगुली उठावना खंकार करना भकूटी चलावना मस्तक चलावना इत्यादि करि गृद्धि जो अति चाह ताके अर्थि संज्ञा करना योग्य नाहीं ॥१०७॥
सार्वकालिकमन्यच्च, मौनं द्वधा विधीयते । भक्तितः शक्तितो भव्यर्भवभ्रमणभीरुभिः ॥१०८॥
अर्थ-संसार भ्रमणतै भयभीत जे भव्य जीव तनिकरि भक्तितै शक्तिसारू एक तौ सार्वकालिक कहिए मरण पर्यंत दूजा असार्वकालिक कहिए कालकी मर्यादारूप ऐसे दोय प्रकार मौन कीजिए है ।।१०८।।
भव्येन भक्तितः कृत्वा, मौनं नियतकालिकम् । जिनेन्द्र भवने देया, घंटिका समहोत्सवम् ॥१०६॥
अर्थ- भव्य जीव करि भक्तिसैं कालकी मर्यांदारूप मौन करिकै जिनेन्द्रके मंदिर विर्षे महोत्सव सहित जैसें घंटिका देनी योग्य है ।
भावार्थ-मौनव्रत पूर्ण होय तब उद्यापन करै तामैं जिन चैत्यालयमैं घंटा चढ़ावै, ऐसा जानना ॥१०६।।