Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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दशम परिच्छेद
अर्थ - ते सर्व भोगभूमिया दिननके सात सतक कहिये गुणचास दिनन करि उपजै हैं, कैसे हैं ते भोगभूमिया, सुन्दर है शब्द जिनका अर कामदेव समान हैं रूप जिनका अर भोगनिविष सामर्थ्य सहित रमणीक ऐसे हैं ॥७६॥
कोमलालापया कान्तः कान्तयाssर्यो निगद्यते । कांसेनाssर्या पुनः कांता चित्रचा दुविधायिना ॥ ८०॥
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अर्थ — कोमल है शब्द जाका ऐसी स्त्री करि आर्य जो भोगभूमिया अपना पति सो कहिए है ।
भावार्थ - स्त्री कोमलवचन सहित पतिसौं बोलै है । अर नाना प्रकार खुशामद करनेवाला जो पति ता करि भोगभूमियाकी स्त्री सो कहिए है, पति शुश्रू षाके वचन सहित स्त्रीसौं बोलै है ||८०||
श्रादेयाः सुभगा : सौम्याः सुन्दरांगा वशंवदाः । रमन्ते सह रामाभिः स्वसमाभिभियो मुदा ॥८१॥
अर्थ – आदर करने योग्य अर सुन्दर अर सौम्य अर सुन्दर हैं अङ्ग जिनके अर भले वचन बोलनेवाले ऐसे ते भोगभूमिया अपने समान जे स्त्री तिनकरि सहित परस्पर हर्ष करि रमैं हैं ॥ ८१ ॥
युग्ममुत्पद्यते सार्द्ध युग्मं यत्र विपद्यते । शोकाक्रन्दादयो दोषास्तत्र संति कुतस्तनाः ॥८२॥
अर्थ --- जहां स्त्री-पुरुषका युगल साथ उपजै है अर साथ ही युगल मरे है तातें शोक अर रोवना इत्यादि दोष है ते कहांतें होय, नाहीं होय हैं ॥ ८२ ॥
करिकेसरिणौ यत्र तिष्ठन्तौ बांधवामिव ।
एकत्र सर्वदा प्रीत्या सख्यं तत्र किमुच्यते ॥ ८३ ॥
अर्थ - हाथी अर सिंह जहां बांधवनिकी ज्यौं एक जायगी सदा