Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ-व्यभिचारी पुरुष हैं ते सत्य शौच शम शील संयम नियम यम इत्यादि सर्व धर्मके अंगनिकौं बाहर छोडिकरी वेश्या के घर में प्रवेश कर है।
भावार्थ-वेश्याके घरमें प्रवेश करते ही सर्व धर्मका नाश होय है ॥६॥
तपो व्रतं यशो विद्या कुलीनत्वं दमो दया । छिद्यन्ते वेश्यया सद्यः कुठार्येवाऽखिला लताः ॥६८॥
अर्थ-जैसे कुल्हाडी करि सर्व लता शीघ्र छेदिए है तैसें वेश्या करि तप व्रत यश विद्या कुलीनपना इन्द्रियनिका दमन दया ये सर्व शीघ्र छेदिये हैं ॥६॥ .. जननी जनको भ्राता तनयस्तनया श्वसा ।
न संति वल्लभास्तस्य दारिका यस्य वल्लभा ॥६६॥ : अर्थ-जा पुरुषकै वेश्या प्यारी है ता पुरुषकै माता पिता भाई पुत्र पुत्री बहन ये प्यारे नाहीं ॥६६॥
... न तस्मै रोचते सेव्यं गुरूणां वचनं हितम् । . सशर्करामिव क्षीरं मित्ताकुलितचेतसे ॥७०॥
अर्थ–वेश्या सेवनेवाले पुरुषकौं सेवने योग्य जो गुरुनका हितरूप वचन सो नहीं रुच है। जैसे पित्तकरि आकुलित है चित्त जाका ऐसा जो पुरुष ताकै अर्थ मिश्री सहित दूध नाहीं रुचै हैं तैसैं ।
भावार्थ-वेश्यासक्तकौं गुरु वचन नहीं सुहावै है ॥७०॥ - वेश्यावक्रगतां निद्यां लालां पिवति योऽधमः । ...
शुचित्वं मन्यते स्वस्य काऽपरातो विडम्बना ॥७१॥ .
अर्थ-जे अधम पुरुष वेश्याके मुख विष प्राप्त जो निंदनीक लाल ताहि पीवें है अर आपकै शुचिपनां मान है या सिवाय और कहां विडम्बना है ॥७१॥ ..