Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
जघन्येभ्यः स पात्रेऽभ्यो जघन्यां याति दानतः । भूमि मेकपल्यो मस्थितिः ॥६७॥
एककोशोच्छ्रयं
अर्थ - बहुरि सो दाता जघन्य पात्रनके अर्थ दिया जो दान तातें जघन्य भोगभूमिकौं प्राप्त होय है, एक कोश ऊँचा अर एक पल्की है स्थिति जाकी ।।६७ ||
वरदामलकविभीतकमात्रं त्रिद्वयेकवासरैः क्रमतः । श्राहारं कल्याणं दिव्यरसं भुंजते धन्याः ॥ ६८ ॥
अर्थ - ते पुण्यवान भोगभूमिया बेर आमला बहेडा इन प्रमाण क्रमतैं कल्याणरूप दिव्य है स्वाद जाका ऐसा आहारकौं तीन दोय एक दिन करिखाय है ।
भावार्थ - उत्तम भोगभूमिया तीन दिन मैं वेर प्रमाण आहार करे हैं, मध्यम भोगभूमिया दोय दिनमैं आंबले प्रमाण आहार करै हैं, धन्य भोगभूमिया एक दिन मैं बहेडे प्रमाण आहार करै हैं ऐसा
जानना ॥ ६८ ॥
विश्राणयन् यतीनामुत्तममध्यमजघन्यपरिणामः । दानं यच्छति भूमीरुत्तममध्यमजघन्या वा ॥ ६६ ॥
अर्थ - पहले तो तीन प्रकार पात्रनके अर्थ दानतें तीन प्रकार ही भोगभूमि मिले है ऐसा कह्या; अब कहै है कि दूजा प्रकार यह भी है कि यतीनकौं उत्तम मध्यम जघन्य परिणामनि करि दान देता जो सो पुरुष उत्तम मध्यम जघन्य भोगभूमिकौं पावै है ||६६ ॥
सर्वे
परित्यक्ताः सर्वे क्लेश विवर्जिताः ।
सर्वे यौवनसंपन्नाः सर्वे संति प्रियंवदा ॥७०॥
अर्थ – ते सर्व भोगभूमिया आजीविकाके द्वंद्व करि रहित हैं अर सर्व ही क्लेशवर्जित हैं अर सर्व ही यौवन सहित है, अर सर्व ही प्रिय वचन बोलनेवाले हैं ॥७०॥