Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
शरीरं धियते येन शममेव महाव्रतम् । कस्तस्याभयदानस्य फलं शक्नोति भाषितुम् ॥१३॥
अर्थ ---- जिस अभयदान करि जीवनिका शरीर पोषिए है, जैसें समभाव करि महाव्रत पोषिए तैसें सो, जिस अभयदानके फल कहनेकौं समर्थ हो है ॥ १३॥
ऐसें अभयदानका वर्णन किया ।
आगे आहार दानका वर्णन करें हैं:
प्रहारेण विना कायो न तिष्ठति कथंचन ।
भास्करेण विना कुच्च वासरो व्यवतिष्ठते ॥ १४ ॥
अर्थ- जैसे सूर्य विना दिन कहांते तिष्ठै, दिन न होय तैसें आहार विना शरीर कोई प्रकार न तिष्ठै है || १४ ||
शमस्तपो दया धर्मः संयमो नियमो दमः ।
सर्वे तेन वितीर्यते येनाऽहारो वितीर्यते ॥१५॥
अर्थ - जो पुरुष करि आहार दोजिए है ताकरि शमभाव तप धम संयम नियम इन्द्रियनिका दमन ये सर्व दीजिए है ॥ १५ ॥
चितितं पूजित भोज्यं क्षीयते तस्य नालये । आहारो भक्तितो येन दीयते व्रतवर्तिनाम् ॥१६॥
अर्थ - जो पुरुष करि भक्तितै व्रतीनकौं आहारदान दीजिए है ताके घर विषै वांछित अर प्रशंसा योग्य जो भोजन सो क्षीण नाहीं होय है ॥ १६ ॥
कल्याणानामशेषाणां भाजनं स प्रजायते । सािनामिवाभोधिर्येनाहारा वितीर्यते । १७ ।।
अर्थ जो पुरुष करिअ दान दीजिए है सो पुरुष जस जलनिका भाता समुद्र हो त समस्त कनिका नाजन होय
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