SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार शरीरं धियते येन शममेव महाव्रतम् । कस्तस्याभयदानस्य फलं शक्नोति भाषितुम् ॥१३॥ अर्थ ---- जिस अभयदान करि जीवनिका शरीर पोषिए है, जैसें समभाव करि महाव्रत पोषिए तैसें सो, जिस अभयदानके फल कहनेकौं समर्थ हो है ॥ १३॥ ऐसें अभयदानका वर्णन किया । आगे आहार दानका वर्णन करें हैं: प्रहारेण विना कायो न तिष्ठति कथंचन । भास्करेण विना कुच्च वासरो व्यवतिष्ठते ॥ १४ ॥ अर्थ- जैसे सूर्य विना दिन कहांते तिष्ठै, दिन न होय तैसें आहार विना शरीर कोई प्रकार न तिष्ठै है || १४ || शमस्तपो दया धर्मः संयमो नियमो दमः । सर्वे तेन वितीर्यते येनाऽहारो वितीर्यते ॥१५॥ अर्थ - जो पुरुष करि आहार दोजिए है ताकरि शमभाव तप धम संयम नियम इन्द्रियनिका दमन ये सर्व दीजिए है ॥ १५ ॥ चितितं पूजित भोज्यं क्षीयते तस्य नालये । आहारो भक्तितो येन दीयते व्रतवर्तिनाम् ॥१६॥ अर्थ - जो पुरुष करि भक्तितै व्रतीनकौं आहारदान दीजिए है ताके घर विषै वांछित अर प्रशंसा योग्य जो भोजन सो क्षीण नाहीं होय है ॥ १६ ॥ कल्याणानामशेषाणां भाजनं स प्रजायते । सािनामिवाभोधिर्येनाहारा वितीर्यते । १७ ।। अर्थ जो पुरुष करिअ दान दीजिए है सो पुरुष जस जलनिका भाता समुद्र हो त समस्त कनिका नाजन होय 112!
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy