Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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एकादश परिच्छेद
[२५३
अर्थ-प्राणीनिकौं घात है सो सर्व वैर भावनिका कारण है, ताते प्राणीके घातकौं मन वचन काय करि त्यागता जो पुरुष ताकै वैरभाव कहां प्रवत्त ॥८॥
मनोभूरिव कांतांग सुवर्णाद्रिरिव स्थिरः । शरस्वानिव गम्भीरो बिबस्वानिव भास्करः ॥६॥ प्रादेयः सुभगः सौम्यस्त्यागी भोगी यशोनिधिः । भवत्यभयनदानेन चिरजीवी निरामयः ॥१०॥
अर्थ-अभयदान करि कामदेव समान सुन्दर शरीर होय है, अर मेरुसमान स्थिर होय है, अर समुद्र समान गम्भीर होय है, अर सूर्यसमान प्रभावान होय है ।६॥ सबनिकै प्यारा होय है, सुन्दर होय है, सौम्य होय है, त्यागी होय है, भोगी होय है. यशनिका भंडार होय है, बहुत काल जीवें है, रोगरहित होय है, ये सर्व अभयदानके फल कहै ॥१०॥
तीर्थकृच्चक्रिदेवानां सम्पदो बुधवन्दिताः ।
__ क्षणेनाभयदानेन दीयन्ते दलितापदः ॥११॥ ___ अर्थ--अभयदान करि तीर्थंकर चक्रवर्ती देव इनिकौं सम्पदा क्षणमात्र करि दीजिए है, कैसी है सम्पदा पण्डितनि करि वंदित है, अर नाश करी है आपदा जिनमैं ऐसी हैं ।।११।।
तदस्ति न सुखं ल के न भूतं न भविष्यति । यन्न सम्पद्यते सद्यो जन्तोरभयानतः ॥१२॥
अर्थ-लोक विर्षे सो सुख वर्तमानमैं नाहीं है अर न भया अर न होयगा सो सुख जीवकौं शीघ्र अभयदानतं नाहीं प्राप्त होय है, सर्व ही सुख प्राप्त होय है ॥१२॥