Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२२६ ]
श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ - कषायनकी मंदतारूप शम अर इंद्रियनिका दमन अर दया अर धर्म संयम अर विनय अर नय अर तप अर वचनका चतुरपना ये सर्व अन्न देनेवाले पुरुषकरि दीजिए है ।। ६२ ।।
क्षुद्रोगेण समो व्याधिराहारेण समौषधिः । नासीन्नास्ति न चाभावि, सर्वव्यापारकारिणी ॥ ६३ ॥
अर्थ - क्षुधारोग समान तो रोग अर भोजन समान औषधि सर्व व्यापारकी करावनेवाली न तौ आगें भई अर न है अर न होगी ।। ६३ ।।
दुर्गंधिकुथितं शीर्णं, विवर्णं नष्टचेष्टितम ।
भोजनैन विना गात्रं जायते मृतकोपमम ॥६४॥
,
अर्थ - दुर्गंधरूप बिगड़ा सड़ा और वर्णकौं प्राप्त भय अर नष्ट भई है चेष्टा जाकी ऐसा शरीर है सो भोजन विना मृतक समान होय है ॥ ६४ ॥
न पश्यति न जानाति, न श्रणोति न जिघ्रति ।
न स्पृशति न वा वक्ति, भोजनेन विना जनः ॥६५॥ अर्थ - भोजन विना मनुष्य है सो न देखे है न जाने है न सुन है न सू है न स्पर्शे है अर न बोलै है सर्व चेष्टा नष्ट होय है ॥ ६५ ॥ प्रविक्रीयान्न कृच्छेषु, कांता कन्यातनूभुवः । आहारं गृह्णते लोका, वल्लभानपि निश्चितम् ॥१६॥
अर्थ – अन्न के कष्ट होने करि लोक हैं ते स्त्री कन्या पुत्र इन प्यारे भी बेचकर आहारकौं निश्चयतें ग्रहण करें है ।। ६६ ॥ यया खादत्यभक्ष्याणि, क्षुध्या क्षपिता जनः सा हन्यतेऽशनेनैव, राक्षसीव भयंकरा ॥६७॥
अर्थ - जिस क्षुधाकर पीड़ित जन है ते अभक्षकौं खाय है सो क्षुधा राक्षसीकी ज्यों भयंकर भोजन करि ही नाश कीजिए है ॥ ६७ ॥