Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर जाकर आत्मा उपशांत होय अर जाकरि परका उपकार होय अर करि पात्रका बिगाड़ न होय सो देने योग्य वस्तु सराहिए है ॥ ८२ ॥ आगे देनेयोग्य वस्तुके विशेष कहैं हैंश्रभयान्नौषधज्ञानभेदतस्तश्चतुविधम् ।
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दानं निगद्यते सद्भिः प्राणिनामुपकारकम् ॥८३॥
अर्थ - अभयदान १ अन्नदान २ औषधदान ३ ज्ञानदान ४ इन भेदनितें प्राणिनिका उपकार करनेवाला दान सन्तन करि च्यार प्रकार कहिए है ||८३ ||
धर्मार्थकाममोक्षाणां जीवितव्ये यतः स्थितिः । तद्दानतस्ततो दत्तास्ते, सर्वे संति देहिनाम् ॥ ८४ ॥
अर्थ--जा कारण धर्म अर्थ काम मोक्ष इनकी स्थिति जीवतव्य होत सन्तै होय है तातें जीवनकौं जीवितव्यके दानतै धर्म अर्थ काम मोक्ष सर्व दिये ।
भावार्थ - जानें जीवनकौं अभयदानादि दिया तानें धर्म अर्थ काम मोक्ष दिये तातैं धर्मादिकका आधार जीवना ही है तातें ॥ ८४ ॥
देवैरुक्तो वृणीष्वैकं त्रैलोक्यप्राणितव्ययोः । त्रैलोक्यं वृणुते कोऽपि न परित्यज्य जीवितम् ॥८५॥
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अर्थ-तीन लोक अर जीवितव्य इन दोऊनि मैं सें एक ग्रहण कर ऐसें देवनिकरि का पुरुष जीवितव्यकों छोड़ करि कहा तीन लोककों ग्रहण करें है, अपितु नाहीं कर है ।
भावार्थ - जीवितव्यकें आग तीन लोककी सम्पदा कछू नाहीं जानें जीवितव्य छोड़कर कोऊ भी तीन लोकको न चाहे है ॥८५॥
त्रैलोक्यं न यतो मूल्यं, जीवितव्यस्य जायते ।
तद्रक्षता ततो दत्त, प्राणिनां किं च कांक्षितम् ॥ ८६ ॥
अर्थ-जातैं जीवितव्यका माल तीन लोक न होय हैं तातें जीवितव्यकी रक्षा करता जो पुरुष ताकरि प्राणीनिकों कहा वांछित वस्तु न दिया, अपितु सर्व हो दिया || ८६ ॥