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________________ २२४ ] श्री अमितगति श्रावकाचार अर जाकर आत्मा उपशांत होय अर जाकरि परका उपकार होय अर करि पात्रका बिगाड़ न होय सो देने योग्य वस्तु सराहिए है ॥ ८२ ॥ आगे देनेयोग्य वस्तुके विशेष कहैं हैंश्रभयान्नौषधज्ञानभेदतस्तश्चतुविधम् । - दानं निगद्यते सद्भिः प्राणिनामुपकारकम् ॥८३॥ अर्थ - अभयदान १ अन्नदान २ औषधदान ३ ज्ञानदान ४ इन भेदनितें प्राणिनिका उपकार करनेवाला दान सन्तन करि च्यार प्रकार कहिए है ||८३ || धर्मार्थकाममोक्षाणां जीवितव्ये यतः स्थितिः । तद्दानतस्ततो दत्तास्ते, सर्वे संति देहिनाम् ॥ ८४ ॥ अर्थ--जा कारण धर्म अर्थ काम मोक्ष इनकी स्थिति जीवतव्य होत सन्तै होय है तातें जीवनकौं जीवितव्यके दानतै धर्म अर्थ काम मोक्ष सर्व दिये । भावार्थ - जानें जीवनकौं अभयदानादि दिया तानें धर्म अर्थ काम मोक्ष दिये तातैं धर्मादिकका आधार जीवना ही है तातें ॥ ८४ ॥ देवैरुक्तो वृणीष्वैकं त्रैलोक्यप्राणितव्ययोः । त्रैलोक्यं वृणुते कोऽपि न परित्यज्य जीवितम् ॥८५॥ , 1 अर्थ-तीन लोक अर जीवितव्य इन दोऊनि मैं सें एक ग्रहण कर ऐसें देवनिकरि का पुरुष जीवितव्यकों छोड़ करि कहा तीन लोककों ग्रहण करें है, अपितु नाहीं कर है । भावार्थ - जीवितव्यकें आग तीन लोककी सम्पदा कछू नाहीं जानें जीवितव्य छोड़कर कोऊ भी तीन लोकको न चाहे है ॥८५॥ त्रैलोक्यं न यतो मूल्यं, जीवितव्यस्य जायते । तद्रक्षता ततो दत्त, प्राणिनां किं च कांक्षितम् ॥ ८६ ॥ अर्थ-जातैं जीवितव्यका माल तीन लोक न होय हैं तातें जीवितव्यकी रक्षा करता जो पुरुष ताकरि प्राणीनिकों कहा वांछित वस्तु न दिया, अपितु सर्व हो दिया || ८६ ॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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