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________________ नवम परिच्छेद [२२५ नाभीतिदानतो दानं, समस्ताधारकारणम् । महीयो निर्मलं नित्यं, गगनादिव विद्यते ॥७॥ अर्थ-आकाश की ज्यौं समस्त आधार का कारण अर बड़ा अर निर्मल अर नित्य ऐसा अभयदानकै सिवाय और कोऊ दान नाहीं है ।। ८७ ॥ आगें आहारदानका वर्णन करें हैंपाहारेण विना पुंसां, जीवितव्य न तिष्ठति । आहारं यच्छता दत्तं, ततो भवति जीवितम् ॥८८ । अर्थ- आहार बिना पुरुषनिका जीवितव्य न तिष्ठ है, तातें आहारकौं देता जो पुरुष ताकरि जीवितव्य दिया ही होय हैं ।। ८८ ॥ नेत्रानंदकरं सेव्यं, सर्वचेष्टाप्रत्तिनम् । अनधस धार्यते देहं, जीवितेनेव जन्मिनाम् ॥८६॥ अर्थ-जैसे नेत्रनिकौं आनन्दकारी सेवने योग्य चेष्टाका प्रवर्तन करनेवाला आयुकरि जीवनिकै देह वारिये है तैसें भोजनकरि देह धारिए हैं ॥८६॥ कांतिः कोतिर्मतिः क्षांतिः शांति !तिर्गती रतिः । उक्तिः शक्तिद्य तिःप्रीतिः प्रतीतिः श्रीर्व्यवस्थितिः ॥६०॥ आहारजितं देहं सर्वे मुचन्ति तत्वतः । द्राविणापाकृतं मत्य वैश्या इव मनोरमाः ॥६१॥ अर्थ-कांति, कीर्ति, बुद्धि, क्षांति, शान्ति, नीति, गति, रति, वाणी, शक्ति, दीप्ति, प्रीति, प्रतीति, लक्ष्मी, स्थिरता ये सर्व आहार रहित देहकौं निश्चयतें छोड़े हैं, जैसे मनकौं प्यारी जे वेश्या ते द्रव्य रहित पुरुषकौं छोडै है ।। ६०-६१ ॥ शमो दमो दया धर्मः, संयमो विनयो नयः । तपो यशो वचोदाक्ष्य, दीयतेऽन्नप्रदायिना ॥२॥
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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