Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
२३०]
श्री अमितगति श्रावकाचार
छप्पय
धर्म मांहि अतिप्रीति विनयजुत रीतिनीतिमति ।
___ सम्यग्दर्शनविमलरत्नभूषित पुनीत अति ॥ जोग अजोग विचार देत जो दानसहितविधि ।
साधु जननिके अर्थि देखि गुणमणिअपारनिधि । सो तीनलोकमैं विमलजस पाय अगितगति जिनकथित । पुनि लहै मोक्षपद अखयसुख ज्ञानमयी भवभयरहित ।
इत्युपासकाचारे नवमः परिच्छेदः । एवं श्री अमितगति आचार्यविरचित श्रावकाचारविष
नवम परिच्छेद समाप्त भया।
-
--
-
दशम परिच्छेद ।
आगै पात्र कुपात्र अपात्रकौं कहै हैं:पात्रकुपात्रापात्राण्यवबुद्धयः फलाथिना सदा देयम् । क्षेत्रमनवबुद्धयोप्तं बीजं न हि फलति फलमिष्टम् ॥१॥
अर्थ-फलका अर्थी जो पुरुष ताकरि पात्र कुपात्र अपात्र इनकौं जानकरि सदा दान देना योग्य है, तातें क्षेत्रकौं बिना जाने बोया जो बीज सो बांछित फलकौं नाहीं फले है ॥१॥
तहां पात्रनिका स्वरूप कहै हैं:पात्रं तत्वपटिष्ठरुत्तममध्यमजघन्यभेदेन । वेधा क्षेत्रमिवीक्तं विविधफ लनिमित्तत्तो ज्ञात्वा ॥२॥