Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
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योग्य हैजा कठोर वचन बोलनेवालेकै दिया भया वस्तु है सो प्रकटपने महावरका कारण होय है ||४७ ||
निगद्य यः
कर्कशमस्तचेतनो,
निजं ज दत्ते द्रविणं शठत्वतः ।
सुखाय दुःखोदयकारणं परं,
मूल्येन गृह्णाति स दुर्मनः कलिम् ॥४८॥
अर्थ- -जो निर्बुद्धी कठोर वचनको बोलके अर मूर्खपनातें अपना द्रव्य देय है सो दुष्टचित सुखके अर्थ केवल दुःखके उदयका कारण जो पाप कलह ताहि मूल्य ग्रहण करें है ।
भावार्थ- जो खोटा वचन बोलके दान देय है सो उलटा पाप बन्ध कर है ॥४६॥
सम्यग्भक्त कुवंतः संयतेभ्यो, द्रव्यं भावं कालमालोक्य दत्तम । दातुर्दानं भूरि पुष्यं विधत्ते, सामग्रीतः सर्वकार्य प्रसिद्धिः
॥४६॥
प्रर्थ - भले प्रकार भक्तिकौं करता जो दाता ताके द्रव्य भाव काल इनकों विचारके दिया भय। दान है सा घने पुन्यकों उपजावै है जातें सर्व कार्यकी प्रसिद्धि है सो सामग्रीतें होय है ।
भावार्थ - भक्ति सहित द्रव्यादिक पूर्व कहे प्रमाण विचारकं पात्रनिके अर्थ थोड़ा भी दिया दान है सो बहुत पुण्य बन्धकों करे है, इहां द्रव्य भाव काल तो कहे अर क्षेत्र पात्रनिकों जान लेना ||४६ ||
बलाहका देकर सं
विनिर्गतं,
यथा पयो भूरिरसं निसर्गतः । विचित्रमाधारमवाप्य जायते,
तय स्फुटं दानमपि प्रदातृतः ॥ ५० ॥
अर्थ जी मजा स्वप गयो नाक