Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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दशम परिच्छेद
नाना प्रकार आधारकौं पाय करि अनेक रसरूप होय है तैसें दातातें निकस्या दान भी प्रकटपने नाना प्रकार पात्रनिकौं पाय अनेक प्रकार रूप परिणम है ।
भावार्थ - जैसें पात्रकौं दान दीजिए तैसा ही कर्मबन्ध स्वयमेव होय है, ऐसा जानना ॥५०॥
घटे यथाssमे सलिलं निवेशितं, पलायते क्षिप्रमसौ च भिद्यते ।
तथा वितीर्णं विगुणाय निष्फलं ः । प्रजायते दानमसौ च नश्यति ॥५१॥
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अर्थ – जैसे काचे घट विषै घरया जो जल है सो शीघ्र निकल जाय है अर घट भी फूट जाय है तैसें गुण रहित पुरुषके अर्थ दिया भया दान है सो निष्फल होय है अर वो लेनेवाला भी नाशकौं प्राप्त होय है, पापबंध कर है, ऐसा जानना ॥ ५१ ॥
विना विवेकेन यथा तपस्विता,
यथा पटुत्वेन विना सरस्वती ।
तथा विधानेन विना वदान्यता,
न जायते शर्मकरी कदाचन ।।५२॥
अर्थ – जैसे विना विवेक तपस्वीपना अर चातुर्यपना बिना सरस्वती कदाचित् सुखकारी न होय है तैसें पूर्वोक्त विधान विना दान देना कदाच सुखकारी नाहीं ॥ ५२ ॥
यथा वितीर्णं भुजङ्गाय पावनं, प्रजायते प्राणहरं विषं पयः । भवत्यपात्राय धनं गुणोज्जवलं, तथा प्रदर्श बहदोषकारणम्
।।५३॥
अर्थ- जैसे सर्व अर्थ दिया गया जो पवित्र दूध सो प्राणनका हवाला विषय दिया भय
र उज्वल जो धन सौ
प। अन
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