Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
करेंगे, जातें जितनी इच्छा है तितना धन तो कहीं कोईकै होय नाहीं; ऐसा जानना ॥३६॥
श्रुत्वा दानमतिर्वयों, भण्यते वीक्ष्य मध्यमः । श्रुत्वा दृष्ट्वा च यो दत्ते, न दानं स जघन्यकः ॥४०॥
अर्थ-दान देतेकौं सुनकरि दान देनेमैं जाको बुद्धि होय सो उत्कृष्ट पुरुष है अर दान देते देखकरि जाकी दान देनेकी बुद्धि होय सो मध्यम पुरुष है अर सुनकरि देवकरि भो जो दान न देय है सो जघन्य पुरुष कहिए अधम है ॥४०॥
ताडनं पीडनं स्तेयं, रोषणं दूषणं भयम् ।
यः कृत्वा ददते दानं, स दाता न मतो जिनः ।।४१॥
अर्थ-जो और जीवनिकी ताडना करिके वा पीडना करिके वा चोरी करिकै वा रोष करिकै वा तृष्णादि षण करिकै वा भय करिकै जो दानकौं देय है सो जिन देवनिन दाता नाहीं कह्या है ॥४१॥
यहीयसा सदा दानं, प्रदेयं प्रियवादिना । प्रियेण रहितं दत्त, परमं वैरकारणम् ॥४२ ।
अर्थ-प्रिय वचन सहित बुद्धिमान पुरुष करि सदा दान देना योग्य है जातें प्रिय वचन विना दिया बहुत दान हे सो वैरका कारण है।
भावार्थ-दान देना सो मीठे वचनसहित देना अर मीठे वचन विना दान भी वैरका कारण है, जातें कटुक वचन सबकौं बुरा लाग है ॥४२॥
यः शमायाकृतं वित्त, विश्राणयति दुर्मतिः ।
कलि गृहाति मूल्येन, दुनिवारमसो ध्रुवम् ॥४२॥
अर्थ-जो दुर्बुद्धि पुरुष समभाव रहित धनका देय हे सो यहु निश्चयतें मोल करि दुनिवार कहिये दुःख से निवारण करिने योग्य पापकों ग्रहण करै है।
___ भावार्थ-क्रोधसहित दान देने में उलटा पापबन्ध होय है तातें . समतासहित दान देना योग्य है ॥४३॥