Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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नवम परिच्छेद
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अर्थ-बहरि जो अकालमैं पात्रि विषै दान देय है ताका दान निष्प्रयोजन है। जैसे विना काल क्षेत्र विष बोया भी बीज कहं ऊगै है ? नाहीं ऊगै है, ऐसा जानना ॥३५।।
काले यदाति योऽपात्रे, वितीर्ण तस्य नश्यति । निक्षिप्तमूषरे वीजं, कि कदाचिदवाप्यते ॥३६॥
अर्थ-बहुरि जो दानके काल में भी अपात्र वि. दान देय है ताका दान नाशकौं प्राप्त होय है । जैसैं ऊसर भूमि विर्षे बोया बीज कहा कहीं पाइए है अपितु नाहीं पाइए है ॥३६॥
प्रक्रमेण विना वंध्यं, वितीर्ण पात्रकालयोः । फलाय किमसंस्कारं, निक्षिप्तं क्षेत्रकालयोः ॥३७॥
अर्थ-बहरि पात्र अर काल इन दोऊन विष दिया दान भी दानकी विधि विना निष्फल है। जैसैं सुन्दर क्षेत्र अर योग्यकाल विष भी धरतीका जोतना आदि संस्कार रहित बोया बीज है सो कहा फलके अर्थ होय है ? अपितु नाहीं होय है ॥३७॥ . कालं पात्रं विधि ज्ञात्वा, दत्तं स्वल्पमपि स्फुटम् ।
उप्तं वीजमिव प्राविधत्ते, विपुलं फलम् ॥३८॥ अर्थ-कालकौं पात्रकौं अर विधिकौं जानिकै थोड़ा भी दिया जो दान है सो बोये बीजकी ज्यों प्रकटपणे विस्तीर्ण फलकौं धारन करै है, ऐसा जानना ॥३८॥
देयं स्तोकादपि स्तोकं, व्यपेक्षो न महोदयः । . इच्छानुसारिणी शक्तिः, कदा कस्य प्रजायते ॥३६॥
अर्थ थोडेत भी थोडा देना योग्य है अर महा उदयकी अपेक्षा करनी योग्य नाहीं जातें इच्छानुसारिणी शक्ति कहीं कोईक होय है ? अपितु नाहीं होय है। . भावार्थ-आपकै थोड़ा भी धन होय है थोडेमैंसे थोडा धन दानमै लगावना। ऐसी न विचारना जो हमारे बहुत धन हो गया जब दान