Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
वंदना करि अंगुली भमावै सो मनो दुष्ट दोष है, १८ बहुरि हंसना, अर अंग घिसना इनकौं करता संता वन्दना करै सो हंसनोद्धघ्न दोष हैं, १६ - बहुरि भौंह टेडी करि वन्दना करे सो भृकुटीकुटिल दोष है, २० - बहुरि गुरु आदिकनिके अतिनिकट होय करि वंदना करे सो प्रविष्ट दोष है, २१ - बहुरि आचार्यादिकनि करि देख्या संता बन्दना करें, -
भावार्थ - आचार्यादिकनिकै आगें तौ भले प्रकार करे अन्यथा यद्वा तद्वा करे सो दृष्टदोष है, २२ - संघविषै करदान मानकरि वन्दना करे, संघके खुशी रहनेके अर्थ वा संघतें भक्त्यादिककी वांछा करि वन्दना करे सो करमोचन दोष है, २३ - बहुरि गुरुनकी आंख्यां छिपाय वन्दना करै सो अदृष्ट दोष है, २४ - बहुरि उपकरणादि पाय करि वन्दना करै सो आलब्ध दोष है, २५ - बहुरि तिन उपकरणादिकनके भिलने के वांछा करि वन्दना करै सो अनालब्ध दोष है, २६ - बहुरि असम्पूर्ण विधान करि कहिए काल शब्द अर्थ इत्यादिक करि हीन वन्दना करै सो हीन दोष है, २७ - बहुरि सूत्रके अर्थकौं ढांक करि वन्दना करै सो पिधायिक दोष है, २८ - बहुरि गूगेकी ज्यौं अतिशय करि हुंकारादि करता वन्दना करै सो मूक दोष है, २६ - बहुरि और बन्दना करनेवालेनके शब्दनको ढांपक वन्दना करै, सो दर्दु र दोष है ३० - बहुरि गुरु आदिक निकै आगे होय करि वन्दना करै सो अग्र दोष है, ३१ - बहुरि अन्त मैं वन्दनाकी चूलिकामै क्रम भूलि जलदी करै ।
भावार्थ - जब वन्दना थोड़ीसी बाकी रहै तब जलदी जलदी करें क्रम भूलि जाय सो उत्तर चूलिक दोष है, ३२ - या प्रकार बत्तीस दोष वंदना करनेवालेनौं त्यागने योग्य हैं || ८६ ॥
क्रियमाणा प्रयत्नेन, क्षिप्रं कृषिरिवेप्सितम् । निराकृतमला दत्त, वन्दना फलमुल्वणम् ॥८७॥