Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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अष्टम परिच्छेद
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है, १८-बहुरि मदिरा करि आकुलित पुरुषकी ज्यौं घूमै सो मदिरा पायी दोष है, १६-बहुरि कायोत्सर्गमैं दशौं दिशान प्रति देखना सो दिगवेक्षण दोष है ॥२०॥
२०-बहुरि ग्रीवाकौं बहुत ऊपर करना सो ग्रीवोद्ध नयन दोष है, २१-बहुरि ग्रीवाकौं नीची करना इत्यादि ग्रीवाधोनयनादि दोष हैं, २२-बहुरि खकारना सो निष्टीवन दोष है, २३- बहुरि अगका स्पर्शना सो वपुःस्पर्शन दोष है. २४-बहुरि माया करि बहुत प्रपंच सहित तिष्टना प्रपंचबहुल दोष है, २५-बहुरि सूत्रभाषित विधिकी हीनता करनी सो विधिन्यून दोष है, २६-बहुरिवृद्धादि वयको अपेक्षादिकका त्यागना ।
___ भावार्थ-अपनी अवस्था बिना देखे कायोत्सर्ग करना सो वयोपेक्षादिवर्जन दोष है, २७- बहुरि कालकी अपेक्षाका उल्लंघन करना कायोत्सर्गके काल कायोत्सर्ग न करना सो कालापेक्ष व्यतिकात दोष है, २८- बहुरि चित्तकी विक्षिप्तता के कारणमैं आसक्त चित्तपनां सो आक्षेप सक्तचित्तता दोष है, २६-बहुरि लौभ करी आकुलित चित्तपनां सो लोभाकुलित दोष है, ३०-बहुरि कायोत्सर्ग विर्षे पाप कार्य मैं परम उद्यम करना सो पापकार्योंद्यम दोष, ३१ बहुरि करने योग्य न करने योग्य विर्षे मूढपना सो मूढ दोष है, ३२-या प्रकार कायोत्सर्ग की विधिके बत्तीस दोष हैं, ते निर्जराके अर्थी जे पुरुष है तिनकरि सर्वथा त्यागना योग्य है ॥६७-६८॥
समाहितमनोवृत्तिः, कृतद्रव्यादिशोधनः । विविक्तं स्थानमास्थाय, कृतेर्यापथशोधनः ॥६॥ गुर्वा दिवंदनां कृत्वा, पर्यकासनमास्थितः । विधाय वंदनामुद्रां, सामान्योक्तनमस्क तिः ॥१०॥ ऊ : सामायिकस्तोतं, समुक्तमुक्तामुद्रकः । पठित्वा वत्तितावों, विदधाति तनत्सृतिम् ॥१०१॥