Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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नवम परिच्छेद
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तहां प्रथम ही दानका स्वरूप कहै हैं :---- दानं वितरता दाता, देवं पात्रं विधिर्मतिः । फ्लैषिणाऽववोद्धव्यानि, धीमता पंच तत्त्वतः ॥२॥
अर्थ-फलका वांछक अर बुद्धिसहित ऐसा जो दान देनेवाला पुरुष ताकरि दाता १ देने योग्य वस्तु २ पात्र ३ विधि ४ मति ५ ये पांच स्वरूप सहित जानना योग्य हैं।
भावार्थ दान देनेवाले वरि पूर्वोक्त पंच वस्तुका स्वरूप जानना योग्य है ॥२॥ __ तहां दाताका स्वरूप कहै हैं
भाक्तिकं तौष्टिक श्राद्ध, सविज्ञानमलोलुपम् । सात्विक क्षमक सन्तो, दातारं सप्तथा विदुः ॥३॥
अर्थ-संतजन है ते दाताकौं सात प्रकार कहै हैं; सात कौन ? प्रथम तौ भक्ति सहित १ अर प्रसन्नचित्त २ अर श्रद्धासहित ३ अर विज्ञान सहित ४ अर लोलुपता सहित ५ अर सात्विक कहिये शक्तिमान ६ अर क्षमावान ७ ऐसा जानना ।।३।।
आगें भाक्तिक आदिका स्वरूप कहै हैं - यो धर्मधारिणां धत्त, स्वयं सेवापरायणः । निरालस्योऽशठः शांतो, भक्तिकः स मतो बुधैः ॥४॥
अर्थ- जो पुरुष धर्मके धारनेवाले नकी सेवामै तत्पर भयासंता स्वयं कहिये अपेक्षा रहित आप ही घारै है सो पंडितनि करि आलस्यरहित बुद्धिमान शांतचित्त ऐसा भाक्तिक कहिये भक्तिसहित कह या है ।
मावार्थ-धर्मात्मानकी सेवा करै सो भाक्तिक कहिए ॥४॥ तुष्टिदत्तवतो यस्य ददतश्च प्रवर्तते। देयासक्तमतेः शुद्धास्तमाहुस्तौष्टिकं जिनाः ॥५॥
अर्थ--जिसके आगे देता भया ताक वा वर्तमानमै देतेकै हर्ष प्रवत्त है ताहि कर्ममल रहित जे शुद्ध जिनदेव हैं ते तौष्टिक कहिए