Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
भावार्थ-इसमें शरीर तो बैठा है अर परिणाम चढते हैं, तातें . उपविष्टोत्थित कह्या है ॥५६॥
आरौं उत्थितोपविष्ट कायोत्सर्ग कहैं हैंप्रातरौद्रद्वयं यस्यामुत्थितेन विधीयते । तामुत्थितोपविष्टाह्वां, निगदंति महाधियः ॥६०॥
अर्थ-जाविर्षे आत रौद्र ध्यान ठाडे होय करि करिए ताक महाबुद्धि पुरुष उत्थित पविष्ट नाम कायोत्पर्ग कहैं है
भावार्थ-जा विर्षे परिणाम तो पड़ते हैं अर शरीर खड़ा है, तातें उत्थितोपविष्ट कह्या है ॥६०॥
आगै उत्थितोस्थित कायोत्सर्ग कहें हैं धर्मशुक्लद्वयं यस्यामुत्थितेन विधीयते ।
उत्थितोत्थितनामानं, तं भाषते विपश्चितः॥६१॥
अर्थ-जा विर्षे धर्म शुक्ल दोनों ध्यान ठाढे होय करि करिए ताकौं उत्थितोत्थित कायोत्सर्ग कहैं हैं
भावार्थ-जा विर्षे परिणाम चढत हैं अर शरीर भी खडा है तातें उत्थितोत्थित कह्या है, ऐसा जानना ॥६१॥
एकद्वित्रिचतुः पंचदेहांशप्रतेर्मतः । प्रणामः पंचधा देवः, पादानतनरामरैः ॥६२॥
अर्थ-एक दोय तीन च्यार पाँच जे शरीरके अंग तिनके नमनतें पाँच प्रकार प्रणाम जिनदेवनिनें कह्या है, जिनदेव कैसे हैं जिनके चरननकौं सर्व तरफतै देव अर मनुष्य नमैं है ।।६२॥
एकांगः शिरसो नामे, सन्यं गः करयोर्द्व योः । त्रयाणां मूर्ख हस्तानां, सव्यंगो नमने मतः ॥६३॥ चतुर्णो करजानूना, नमने चतुरंगकः । करमस्तकजानूनां पंचागः पंचक्ष नते ॥६४॥