Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ – स्पर्शन, रसन, घ्राण, नेत्र, श्रोत्र, ऐसैं पांच इन्द्रिय हैं । बहुरि तिनिका स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द, विषय है ॥ १२ ॥
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गण्डूपदजलू काक्षकृमिशंखेद्रगोपकाः । गदिता विविधाकारा, द्विहृषीकाः शरीरिणः ॥१३॥
अर्थ - गिंडोला, जौंक, कौडी, कृमि, शंख, इन्द्रगोप ये नाना प्रकार हैं आकार जिनके ऐसे द्वोंद्रिय जीव कहे हैं ॥ १३ ॥
यूकापिपीलिका निक्षाकुन्थु मत्कुणवृश्चिकम् । त्रिहृषीकं मतं प्राज्ञै, विचित्राकारसंयुतम् ॥ १४॥
अर्थ – जूवां, कीडी, लीख, कुन्थुवा, खटमल विच्छू ये बुद्धिवाननि करि नानाप्रकार संयुक्त श्रींद्रिय कहे हैं || १४ ||
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पतंगमक्षिकादंशम राभ्रमरादयः ।
चतुरक्षा विबोद्धव्या, विबुद्ध जिनशासनैः ॥१५॥
अर्थ - विशेषपण जाण्या है जिन शासन जिनने ऐसे पुरुषनि करि पतंग, माखो, दंश, मच्छर, भ्रमर आदि जीव हैं ते चतुरिंद्रिय जाननें ॥ १५॥
तिर्यग्योनिभवाः शेषाः, श्वाभ्रमानवनाकिनः ।
विभिन्ना विविधेर्भेदः,
अर्थ - बाकी तिर्यंचयोनिविषे उपजे तियंच बहुरि नारकी मनुष्य देव हैं ते नानाभेदनि करि भिन्न ग्रहण किये हैं पंच इन्द्रिय जिननें ऐसें
जानना ।
स्वीकृतेंद्रियपंचकाः ॥ १६ ॥
भावार्थ - एकेन्द्रिय विकलेंद्रियविना और सर्व हीं तिर्यंच अर नारकी नुष्य देव ये सब पंचेंद्रिय जानना ॥ १६ ॥
हृषीकपंचकं भाषा, कायस्वांतबत्रिकम् । श्रायुरुच्छ्वा सनिश्वास, द्वंद्वं प्राणादशोदिताः ॥१७॥
अर्थ – इन्द्रियप्राण पंच अर भाषा मन काय ऐसें बल प्राण तीन बहुरि आयु अर उच्छवासनिश्वास ये दोय ऐसें प्राण दश कहे हैं ||१७||