Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ-बहरि सबनिका एक ही आत्मा है ऐसे कहना युक्त नाही, जातें जन्म मरण सुख दुःख इनि न्यारे न्यारेनिका उपलंभ है।
सर्वेषामेक एवात्मा, युज्यते नेति जल्पितुम् । जन्ममृत्युसुखादीनां, भिन्नानामुपलब्धितः ॥२८॥
अर्थ-बहुरि सबनिका एक ही आत्मा है ऐसे कहना युक्त नाहीं, जात जन्म मरण सुख दुःख इनि न्यारे न्यारेनिका उपलंभ है।
भावार्थ-जन्म मरण सुख दुःख इत्यादि सब निकै न्यारे न्यारे देखिए हैं तातें सबनिका एक आत्मा कहना मिथ्या है ॥२८॥
न वक्तव्योऽणुमात्रोऽयं, सर्वैर्येनानुभूयते । अभीष्टकामिनीस्पर्श, सर्वांगीणः सुखोदयः ॥२६॥
अर्थ-बहूरि यहु आत्मा अगुमात्र है ऐसा कहना. योग्य नाहीं, जा कारण करि वांछित स्त्रीके स्पर्श वि. सर्वांगते उपज्या सुखका उदय सबनिकरि अनुभव कीजिए है।
भावार्थ-स्त्रीके स्पर्श विर्षे सुखका उपजना सर्व अंगविर्षे प्रत्यक्ष देखिए है तातें अगुमात्र आत्मा कहना है सो मिथ्या है ॥२६॥
समीरणस्वभावोऽयं, सुन्दरा नेति भारती। सुखज्ञानादयो भावाः, संति नाचेतने यतः ॥३०॥
अर्थ-बहुरि वह कह है जो यहु सर्वांग सुख होना है सो पवनका स्वभाव है ताक आचार्य कहैं हैं ऐसी वाणी सुन्दर नाहीं, जातें सुख ज्ञान इत्यादि चेतनभाव हैं ते अचेतन पवनविर्षे नाहीं हैं ॥३०॥
न ज्ञानविकलो वाच्यः, सर्वथात्मा मनीषिभिः । क्रियाणां ज्ञानजन्यानां, तत्राभावप्रसंगतः ॥३१॥
अर्थ-बहुरि ज्ञानरहित आत्मा पण्डितनि करि सर्वथा कहना योग्य नाहीं जाते तिस आत्मविषै ज्ञान जनित क्रियानिका अभाव का प्रसंग ठहरै है।
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