Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
यशांसि नश्यंति समानवृत्तं गंदातुरस्येव सुखानि सद्यः । विवद्ध ते तस्य जनापवादो, विषाकुलस्येव मनोविमोहः ॥४०॥
अर्थ – जैसें रोग करि पीड़ित पुरुषके सुख शीघ्र नाशको प्राप्त ही है तैसें मानसहित है प्रवृति जाकी ऐसा जो पुरुष ताके यश शीघ्र नाशकौं प्राप्त होय है । बहुरि ताका लोकापवाद बढ़े है जैसे विषकरि आकुल है चित्त जाका ऐषः जो पुरुष ताके मनमैं अचेतपना बड़े तैसें, ऐसा जानना ॥ ४० ॥
हुताशनेनेव तुषार शिविनश्यतेऽलं विनयो मदेन ।
नैवानुरागं विनयेन होनो, लोके शमेनैव चरित्रमेति ॥ ४१ ॥
अर्थ – जैसे अग्निकरि तुषारकी राशि विनाशकों प्राप्त होय है तैसें मानकरि विनय नाशकौं प्राप्त होय हैं । बहुरि विनय करि हीन है सो लोक में प्रीति भावकौं न पावै हैं, शमभाव करि ही चारित्रकों पाव है, ऐसा जानना ॥४१॥
पूता गुणा गर्ववतः समस्ता भवन्ति वंध्या यम संयमाद्याः । प्ररोप्यमाणा विधिना विचित्रा: किमूषरे भूमिरुहाः फलन्ति ॥ ४२ ॥
अर्थ - गर्वसहित पुरुषकै यम कहिए कालकी मर्यादारूप नियम अर संयम कहिए इंद्रिय विषय अर हिंसाका त्याग इत्यादि पवित्र गुण हैं ते स्वर्गादि फल रहित होय हैं। इहां दृष्टात क है हैं, ऊषर भूमिविष विधिसहित लगाये नाना प्रकार वृक्ष हैं ते कहा फलै हैं, अपितु नाहीं फलै है ॥४२॥
मानेन निदानमित्थं
न जातु करोति दोषं परिचित्य चित्रं । प्राणापहारं न वि नोकमानो विषेण तृप्ति वितनोति कोऽपि ॥ ४३ ॥
अर्थ - या प्रकार मानके नानाप्रकार दोषकौं विचारिकै मानसहित निदानकौं कदाच भी न करें है । जैसैं प्राणके नाशकौं देखता पुरुष कोई भी विकरि तृप्तिक न विस्तारै है तैसें ||४३||