Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम परिच्छेद
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जानिए है, कर्मोदय विना रागादिक कैसे होय; जाकै कर्म बंध नाहीं सो रागादि सहित नाहीं जैसे मुक्त जीव। इहां कार्यलिंगतें अनुमान किया है ॥५५॥ आगें फेर आशंकाका उत्तर करै हैं ;
ते जीवजन्याः प्रभवंति नूनं, नैषापि भाषा खलु युक्तियुक्ता । नित्यप्रसक्तिःनथमन्यथैषां,
संपद्यमाना प्रतिषेधनीया ।५६॥ अर्थ-वादी कहै है कि ते रागादिभाव जीवहीतें उपजै हैं; ताकौं आचार्य कहैं हैं—कि ऐसी वाणी निश्चय करि युक्त नाहीं, जातें ये रागादि जीवहीतें उपजे होय तौ इन रागादिकनिकी नित्य सम्बन्धता आई सो कैसे निषेध करने योग्य होय। ।
भावार्थ--रागादि भाव आत्माके स्वभाव होय तौ स्वभावका अभाव होनेत सर्व अवस्थामैं रहे चाहिए तब जीवकै मोक्ष कैसैं होय तात रागादिक हैं ते कर्मोदयके निमित्त विना न होय है, ऐसा जानना ॥५६॥ आगें फेर कहैं हैं--
नित्येजीवे सर्वदा विद्यमाने, कादाचित्का हे तुना केन संति । निर्मुक्त्तानां जायमाना निषेद्ध,
ते शक्यंते केन मुक्त्तिश्च तेभ्यः ॥५७॥ अर्थ-सदाकाल विद्यमान जो नित्य जीव ता विष कही होय कहीं न होय ऐसे कदाच होनेवाले जे रागादिक ते कौन कारणकरि होय हैं अर मुक्त जीवनिकै उत्पन्न भए जे रागादिक ते काहे करि निषेधनेकौं समर्थ हजिए अर तिनतें मुक्ति काहेकरि होय ।
भावार्थ--जैसैं फटिकमणि निर्मल तो सदा है तांमैं काला पीला आदि जैसा डांक लगे तैसा परिणमैं सो परिणमन कदाचित् होय है ताते ताकौं कादचित्क कहिए तैसें आत्मा तो नित्य है ताक मोहादि कर्मका निमित्त मिले रागादिरूप परिणमन होय है सो कादचित्क है, अर ते रागादि कर्म निमित्तविना होय तो रागादिक नित्य स्वभाव ठहर तब तिनका मुक्त जीवक भी अभाव केसैं होय अर. तिनते कैसे छूट, तातें कर्मका अस्तित्व : मानना योग्य है ॥५७॥