Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
हिंसा सत्य स्तेयाब्रह्मपरिग्रहनिवृत्तिरूपाणि । ज्ञेयान्यणुव्रतानि, स्थूलानि भवंति पंचात्र ॥३॥
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अर्थ -- इहां स्थूल हिंसा झूठ चौरी अब्रह्म परिग्रह इनितं निवृत्तिरूप पांच अणुव्रत जानना योग्य हैं || ३ ||
तहां स्थूल हिंसात्याग व्रतकौं कहै हैं;
द्वधा जीवा जैनैर्मतास्त्र, संस्थावरप्रभेदेन ।
तत्र सरक्षायां तदुच्यतेऽणुव्रत प्रथमम् ॥४॥
प्रर्थ - जैनीनिनैं स स्थावरके भेद करि दोय प्रकार जीव कहै है तहां सजीवनकी रक्षा होतसंतै सो प्रथम अणुव्रत कहिए है || ४ || स्थावरघाती जीवस्त्रससंरक्षी, विशुद्धपरिणामः ।
योऽक्षविषयान्निवृत्तः, सः संयतासंयतो ज्ञेयः ॥ ५॥
अर्थ - जो जीव स्थावरघाती है स्थावरकी हिंसा त्यागनेकौं असमर्थं है, अर सजीवनिका भले प्रकार रक्षा सहित है अर विशुद्ध है परिणाम र इन्द्रिय विषयनित विरक्त है सो संयतासंयत कहिए देशव्रतका
धारक श्रावक जानना । ५ ।
हिंसा द्वेधा प्रोक्ताऽरंभानारंभजत्वतोदक्षैः । गृहवासतो निवृत्तो द्वेधापि त्रायते तां च ॥ ६॥
गृहवाससेवनरतो मन्दकषायः प्रवृत्तितारंभाः । आरम्भजां स हिंसा शक्नोति न रक्षितुं नियतम् ॥७॥
अर्थ -- पंडित करि आरम्भ अर अनारंभतै उपजवे पने करि हिंसा सो कही है दोय प्रकार गृहवासतें निवृत्त जो मुनि सो तौ दोय प्रकार हिंसा बचा है || ६॥
अर जो गृहवासके सेवने मैं रत श्रावक मन्द कषाय स्वरूप वर्त्ताया है आरम्भ जानें सो निश्चय करि आरम्भ जनित हिंसाके त्यागनेकौं समर्थ न होय है ।