Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार।
त्रस हिंसाका त्याग करिए है तिन करि स्थावरकी हिंसा विर्षे अनुमोदना कैसे करिए है।
___ भावार्थ-कोउ कहै श्रावकके त्रस हिंसाका त्यागकै ऐसे उपदेश मैं स्थावर हिंसामैं अनुमोदना आई ताक कह्या है । जीव सर्वही का हिंसक है ताकै सर्व हिंसा छटती न जानि त्रस हिंसा छुड़ाई है किछ स्थावरकी हिंसा करनेका उपदेश नाहीं तातें स्थावर हिंसामें अनुमोदना नाहीं ऐसा जानना ॥ १८ ॥
त्रिविधा द्विविधेन मता, विरतिहिंसादितो गृहस्थानां । त्रिविधा त्रिविधेन मता, गृहचारकतो निवृत्तानाम् ॥१६॥
अर्थ-गृहस्थनिकै हिंसादिकनितें विरति कहिए त्यागभाव सो दोय प्रकार सहित तीन प्रकार । बहुरि गृह त्यागनिकै तीन प्रकार सहीत तीन प्रकार है।
भावार्थ-करै नाहीं करावै नाहीं मन वचन काय कर ऐसे छह प्रकार के त्याग है । अनुमोदना सहित नवकोटी त्याग नाहीं जा हिंसादिक मैं अनुमोदनका प्रसंग बन रहा है, ऐसा गृहस्थनिकै जानना। बहुरि जे गहाचार के त्यागी हैं तिनकै कृत कारित अनुमोदना सहित मन वचन काय करि नवकोटी का त्याग हैं, ऐसा जानना ॥ १६ ॥
जीववपुषोरभेदो येषामेक्रांतिको मतः शास्त्रे । कायविनाशे तेषां जीवविनाशः कथं वार्यः ॥ २० ॥
अर्थ-जिनके शास्त्र विष जोवका अर शरीरका एकांतरूप अभेद कह्या है तिनके शरीर के विनाश होत संतें जीवका कैसे न भया ।। २० ।।
आत्मशरीरविभेदं वदंति, ये सर्वथा गतविवेकाः । कायवधे हन्त कथं, तेषां संजायते हिंसा ॥ २१ ।।
अर्थ-जो विवेक रहित आत्माका अर शरीरका सर्वथा भेद कहै है तिनके शरोरके वध होत संत हिंसा कैसे होय यह बड़े आश्चर्य की बात है।