Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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षष्ठम परिच्छेद
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भावार्थ - हिंसक जीवनिकी हिंसा योग्य होय तौ हिंसकजीव तौ सब ही हैं सब होकी हिंसा ठहरै तातें हिंसक जीवनिकी भी हिंसा करना योग्य नाही ।। ३४ ।।
आगे वानैं कह्या था जो धर्मके अर्थ हिंसा करनी ताका निषेध करें हैं
धर्मोऽहिंसा हेतुहिं सातोः
जायते कथं तथ्यः ।
न हि शालिः शालिभवः, कोद्रवतो दृश्यते जातः ॥ ३५॥ |
अर्थ - धर्म है सो अहिंसा हेतु है अहिंसातें उपजै है सो तैसा सत्यार्थ धर्म हिंसा कैसे उपजै । इहां दृष्टांत कहै है, -धानतें उपज्या जो चावल सो कोंदू तैं उपज्या न देखिए है ।
भावार्थ-दया है कारण जाका ऐसा धर्म हिंसाते कदाच न होय है, जातैं कारणानुरूप कार्य होय है, तातै धर्मके अर्थ भी हिंसा करना योग्य नाही ॥ ३५ ॥
आगें पहले वानै कह्या था जो पापके नाशके अर्थ हिंसकनकी हिंसा करनी ताका निषेध करें है, -
पापनिमित्तं हि वधः पापस्य विनाशने न भवति शक्तः । छेदनिमित्तं परशु; शक्नोति लतां न वर्द्ध यितुम् ।। ३६ ।।
अर्थ - पापका कारण जो जीवनिका घात सो पापके विनाशने विषै समर्थ न होय है | जैसे छेदनेका कारण फरसी सो लताके बढ़ावनेको समर्थ न होय तैसैं ।। ३६ ।।
आगे हिंसक जीवfनकी हिंसा धर्मके अर्थ मानै ताका निषेध कर है; -
हिस्राणां यदि घाते धर्मः, संभवति विपुलफलदायी । सुखविघ्नस्तर्हि गतः, परजीवविघातिनां घाते ॥ ३७ ॥
अर्थ – जो हिंसक जीवनिके घात विषै बडा फलका देनेवाला धर्म संभवें है तो पर जीवनिकी हिंसा करनेवालेनिके धात मैं सुख विषै विषै विघ्न आया ।