Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम परिच्छेद
[१५३
द्रव्यका ग्रहण करना सो तदाहृतादान कहिए बहुरि बड़े मानतें लेना छोटे मानतें देना सो मानवैपरीत्य कहिए, बहुरि राजनियमका उल्लंघन करना महसूल आदि चोरना सो विरुद्व राज्यातिक्रमण कहिए । ये तीसरे अणुव्रतके पांच अतिचार कहे ॥५॥
आग परस्त्री त्याग अणुव्रतके अतीचार कहै हैं -- आत्तानुयात्तत्वरिकांग संगा-वनंगसंगो मदनातिसंगः । परोपयामस्य विधानमेते, पंचातिचारा गदिताश्चतुर्थे ॥६॥
अर्थ-पर करि ग्रहण करी बहुरी नाहीं ग्रहण करी ऐसी व्याभिचारिणी स्त्री के अंगकासंग करना तिनप्रति गमन करना, बहुरि अनंगसंग कहिए हस्तादिकतै क्रीड़ा करणा, बहुरि कामका तीव्र परिणाम, अर दूसरेका विवाह करावना। ये पाच अतीचार अगुव्रतके कहे हैं ॥६॥
प्रागै परिग्रह परिणाम अनुव्रतके अतीचार कहैं हैंक्षेत्रवास्तुधनधान्यहिरण्य-स्वर्ण कर्मकरकुप्यकसंख्याः । योऽतिलंघति परिग्रहलोभ-स्तस्य पंचकमवाचि मलानाम् ॥७॥
अर्थ-क्षेत्र कहएि खेतीका स्थान वास्तु कहिए घर इन दोऊनका एक स्थान, अर हिरण्य कहिए सोना इनका एक स्थान अर धन गौ आदि अर धान्य गेहं आदि इनका एक स्थान अर, कर्म कर दासी दास, अर कप्प कहिए वस्त्रादि इन पांचनकी संख्याकौं जो परिग्रहके लोभसहित उलंधैं है ताके अतीचारनिका पंचक कहा ॥७॥ प्रागें दिग्विरतिके पांच प्रतीचार कहै हैं :स्मृत्यंतरपरिकल्पनमूर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमाः प्रोक्तः ।
क्षेत्रविवृद्धिः प्राज्ञैरतिचाराः पंच दिग्विरते ॥८॥
अर्थ-जो योजनादिकका परिमाण करया था ताक भूल अ र सुरत करना, अर ऊपर नीच तिरछा इन तीनू निका उलंघना कहिए पर्वतादि चढ़ना कूपादिमैं उतरना विलादिमैं घुसना ऐसें तीन भए, बहरि लोभके वशतें क्षेत्रकी वृद्धि वांछना। ये दिग्विरतिके पांच अतिचार पंडितनिनें कहे हैं ॥८॥