Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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सप्तम परिच्छेद
अर्थ – मानकरि आकुल है आत्मा जाका ऐसा जो पुरुष है सो देवका गुरुका धर्मात्माका पूजनीकका वारंबार तिरस्कार अपमान करके अर नीचकर्म जीव पापकर्मके समूहरूप वटसारीको ग्रहण कारे नीच गतिक जाय है ।
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भावार्थ - मानी जीव गुरुका भी अविनय करै है अर पापकर्म बांधि तिर्यंचादि गतिकौं प्राप्त होय है ऐसा जानना ॥३१॥
वामनः पामनः कोपनो वंचनः, कर्कशो रोमशः सिध्मलः कश्मलः । कोलिको मलिकः शालिकच्छपकः, fred लुब्धको मुग्धकः कुष्ठिकः ॥३२॥ चित्रक: कौकिशो मूषितो जाहको, वंजुलो मंजुलः पिप्पलः पन्नगः ।
कुक्कुरस्तित्तिरो रासभो वायसः, कुक्कुटो मर्कटो मानतो जायते ॥३३॥
अर्थ – मानतें जीव जो नीच पर्याय पावै है सो क है है - वामन होय है, मगर होय है, क्रोधी होय है, ठिग होय है, कठोर होय है, रोमश कहिए बड़े रोमका धारो होय है, सिध्मल कहिये भूरा होय है, पापी होय है कोली होय है, माली होय है, सिलावट होय है, छींपा होय है, चाकर होय है पराधीन लोभी होय है, मूढ़ होय है, कोढ़ी हो है ॥ ३२ ॥
चीता होय है, घूघू होय है, मूसा होय है, जाहक होय है, बहुरि वंजुल मंजुल पिप्पल कोई नीच तिर्यंच विशेष है सो होय है, बहुरि सर्प अर कुत्ता अर तीतर अर गधा अर कागला अर मुर्गा अर बन्दर इत्यादि नीच मनुष्य तिर्यंचन पर्याय जीव मानते पावै है तातें मान त्यागना योग्य हैं, यहु तात्पर्य है ॥३३॥
लक्ष्मीक्षमा कीर्तिकृपा सपर्या
निहत्य सत्या जनपूजनीयाः । निषेव्यमाणो रभसेन मानः
श्वभ्रालये निक्षिपतीति घोरे ॥ ३४ ॥
अर्थ - सेया भया मान है सो सत्यार्थ रूप अर लोकनि करि पूजनीक