Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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षष्ठम परिच्छेद
[१४७
त्यक्तात रौद्रयोगो भक्त्या, विद्धाति निर्मलध्यानः । सामायिक महात्मा सामायिक संयतो जीवः ॥८६॥
अर्थ-त्यागे' हैं आर्त रौद्र ध्यान जानें अर निर्मल है ध्यान जाक ऐसा महात्मा रागद्वेषके त्याग तैं भले प्रकार यत्नसहित जीवै है सो सामायिककौं धारै है।
भावार्थ-रागद्वेष त्यागते आत्मविर्षे "सं" कहिए एकरूप होय करि "अयनं' कहिए परिणाम सो समय है; अर समयका जो भाव सामायिक कहिए सो ऐसे सामायिकके काल समस्त सावध योगके त्यागतें श्रावककौं भी उपचारतें महाव्रत कह्या है इतना यह विशेष जानना ॥१॥ कालत्रितये वेधा कर्तव्या देववन्दना सद्भिः । त्यक्ता सर्वारम्भ भवमरणविभीतचेतस्कः ॥ ८७ ॥
अर्थ- जन्ममरणतै भयभीत हैं चित जिनके ऐसे सत्पुरुषनि करि प्रभात अर मध्याह्न अर अपराह्न इन तीनों काल विर्षे मन वचन काय करि अरहन्तादि देवनिकी वन्दना करनी योग्य है ॥८७॥
आग प्रोषधोपवासकौं कहै हैं - सदनारम्भनिवृत्तैराहारचतुष्टयं सदा हित्वा । पर्वचतुष्के स्थेय संयमयमसाधनोद्य क्तः ॥ ८८ ।।
अर्थ--गृह के आरम्भ” रहित अर यावज्जीव त्यागरूप सयम अर थोड़े काल त्यागरूप यम इन विणै उद्यमी पुरुषनि करि पर्व चतुष्क कहिए एक मास मैं दोय अष्टमी दोय चतुर्दशी इन विौं आहार चतुष्टय कहिए खाद्य स्वाद्य असन ( लेह्य ) पेय इनकौं त्यागकरि सदा तिष्ठना योग्य है।
भावार्थ-गहारम्भ त्यागकै अर आहार त्यागकै संयम रूप पर्वत विौं सदा तिष्ठना सो प्रोषधोपवास व्रत जानना ।। ८८ ॥
तांबूलगन्धमाल्यास्नानाभ्यंगादिसर्वसंस्कारम् । ब्रह्मवतगतचित्तैः, स्थातव्यमुपोषितैस्त्यत्क्ता ॥ ६ ॥ मर्थ-तांबूल माला स्नान उवटना इत्यादि सर्व संस्कारकौं त्याग