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________________ श्री अमितगति श्रावकाचार हिंसा सत्य स्तेयाब्रह्मपरिग्रहनिवृत्तिरूपाणि । ज्ञेयान्यणुव्रतानि, स्थूलानि भवंति पंचात्र ॥३॥ १२६ ] अर्थ -- इहां स्थूल हिंसा झूठ चौरी अब्रह्म परिग्रह इनितं निवृत्तिरूप पांच अणुव्रत जानना योग्य हैं || ३ || तहां स्थूल हिंसात्याग व्रतकौं कहै हैं; द्वधा जीवा जैनैर्मतास्त्र, संस्थावरप्रभेदेन । तत्र सरक्षायां तदुच्यतेऽणुव्रत प्रथमम् ॥४॥ प्रर्थ - जैनीनिनैं स स्थावरके भेद करि दोय प्रकार जीव कहै है तहां सजीवनकी रक्षा होतसंतै सो प्रथम अणुव्रत कहिए है || ४ || स्थावरघाती जीवस्त्रससंरक्षी, विशुद्धपरिणामः । योऽक्षविषयान्निवृत्तः, सः संयतासंयतो ज्ञेयः ॥ ५॥ अर्थ - जो जीव स्थावरघाती है स्थावरकी हिंसा त्यागनेकौं असमर्थं है, अर सजीवनिका भले प्रकार रक्षा सहित है अर विशुद्ध है परिणाम र इन्द्रिय विषयनित विरक्त है सो संयतासंयत कहिए देशव्रतका धारक श्रावक जानना । ५ । हिंसा द्वेधा प्रोक्ताऽरंभानारंभजत्वतोदक्षैः । गृहवासतो निवृत्तो द्वेधापि त्रायते तां च ॥ ६॥ गृहवाससेवनरतो मन्दकषायः प्रवृत्तितारंभाः । आरम्भजां स हिंसा शक्नोति न रक्षितुं नियतम् ॥७॥ अर्थ -- पंडित करि आरम्भ अर अनारंभतै उपजवे पने करि हिंसा सो कही है दोय प्रकार गृहवासतें निवृत्त जो मुनि सो तौ दोय प्रकार हिंसा बचा है || ६॥ अर जो गृहवासके सेवने मैं रत श्रावक मन्द कषाय स्वरूप वर्त्ताया है आरम्भ जानें सो निश्चय करि आरम्भ जनित हिंसाके त्यागनेकौं समर्थ न होय है ।
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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