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________________ षष्टम परिच्छेद [१२५ प्राप्त है भोग जावि ऐसे लोक पूजित सुखकौं भोग करि अनन्त है ज्ञान जिनके ऐसे भये संते निर्वाध मोक्षलक्ष्मीकौं प्राप्त होय है ॥७४॥ मद्य मांस मधु पंच उदंवर, फल त्रसजीवनिके आधार । लौंणी निशिभोजन इत्यादिक, तीव्र पाप त्याग दुखकार ॥ विमल मूलगुण प्रथम धरत हम, सब व्रत शोभा पावै सार । तातै भोगि सार सुख क्रमतें, होय अमितगति जगसिरदार ॥ इति श्री अमितगति प्राचार्यकृत श्रावकाचारविर्षे पंचम परिच्छेद समाप्त भया । षष्ठम परिच्छेद आगें द्वादश अगुव्रतका वर्णन करें हैं;मद्यादिभ्यों विरतानि, कार्याणि शक्तितो भव्यः । द्वादश तरसा छेत्त, शस्त्राणि शितानि भववृक्षम् ॥१॥ अर्थ-मद्यादिकनि विरक्त जे भव्यपुरुष तिन करि शक्ति सारू द्वादश व्रत करणा योग्य है । ते व्रत संसारवृक्षकौं वेग करि छेदनकौं तीक्ष्ण शस्त्रकी ज्यौं हैं ॥१॥ अणुगुणशिक्षाद्यानि व्रतानि गृहमेधिनां निगद्यते । पंचत्रिचतुः संख्यासहितानि द्वादश प्राज्ञैः ॥२॥ अर्थ-पंडितनि करि श्रावकनिके अगवत गुणव्रत शिक्षाव्रत क्रमसैं पांच तीन च्यार संख्या सहित द्वादश कहे हैं। भावार्थ-पांच अणुव्रत तीन गुणव्रत च्यार शिक्षाव्रत ऐसे बारह व्रत श्रावकनिके कहै हैं ।।२।। __ आगै अगुव्रतनिकौं कहैं हैं;--
SR No.007278
Book TitleAmitgati Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
PublisherBharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages404
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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