Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचम परिच्छेद
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आगें रात्रिभोजन त्यागनेवालेके गुण कह हैं--
पद्मपत्रनयनाः प्रियंवदाः, श्रीसमः प्रियतमा मनोरमाः । सुन्दरा दुहितरः कलालयाः,
पुण्यपंक्तय इवात्तविग्रहाः ॥६१॥ भ्रंशितव्यसनवृत्तयोऽमलाः, पावना हिमकरा इवांगजाः । शकमंदिरमिवास्ततामसं, मंदिरं प्रचुररत्नराजितम् ॥६२॥ लब्धचितितपदार्थमुज्ज्वलं, भूरिपुण्यमिव वैभवं स्थिरम् । सर्वरोगगणमुक्तदेहता, सर्वशर्मनिवहाधिवासिता ॥६३॥ ज्ञानदर्शनचरित्रभूतयः सर्बयाचितविधानपंडिताः । सर्व लोकपतिपूजनीयता, रात्रिमुक्तिविमुखस्य जायते ॥६॥
अर्थ-कमलके पत्रसमान है नयन जिनके अर प्रिय वचन बोलनेवाली लक्ष्मीके समान रमावनेवाली ऐसी स्त्री होय है, अर कला विद्यानिको स्थान अर पुण्यकी पंकतिसमान ग्रहण किया है शरीर जिननें ऐसो सुन्दर कन्या होय है ॥५१॥
अर दूर करी है व्यमनकी प्रवृत्ति जिन पवित्र निर्मल चन्द्रमा समान पुत्र होय हैं, अर इंद्रके मंदिर समान अन्धकार रहित प्रचुर रत्ननि करि शोभित ऐसा मंदिर मिले है ।।६२॥ . .
अर पाया है वांछित पदार्थ जाते एसी उज्ज्वल महा पुण्य समान स्थिर वैभव होय है, अर सर्व रोगनके समूह करि रहित देहपना अर सर्व सुखनके समूहका आधारपना ॥६३॥