Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
अर्थ-ऐसें जो विचार करि कुदेवनिके समूहकौं त्यागिक जिनेन्द्रदेव को ग्रहण करै है सो पुरुष परमतत्वकौं भजै है, सेवै है, इहां दृष्टांत कह है-जो बुद्धिमान काचकौं छोडकरि चिन्तामणि रत्न को ग्रहण करै है सौ कहा निश्चयकरि सुखकौं न पावै है, पावै ही है ॥७॥
मिथ्यात्वदूषणमापस्य विचित्रदोषं, संरूढसंसृविवधूपरितोषकारि । सम्यक्तरत्नममलं हृदि यो विधत्ते,
मुक्तयंगनामितगतिस्तमुपैति सद्यः ॥६८।। अर्थ-वृद्धिकौं प्राप्त जो संसारवधू ताका परितोष करनेवाला, प्रसन्न करने वाला अर अनेक दोषस्वरूप ऐसा मिथ्यात्व रूप दूषणकौं त्यागकरि जो पुरुष निर्मल सम्यक्तरत्नकौं हृदय विर्षे धारै हैं, ता पुरुष प्रति अनंती है ज्ञान जाकै ऐसी मुक्तिस्त्री है सो शीघ्र प्राप्त होय है ।
भावार्थ-मिथ्यात्वकौं त्यागकरि जो सम्यक्त धारै है ताकू मुक्तिक प्राप्ति शीघ्र होय है ॥१८॥
छप्पय । पोषत विषयकषाय पक्ष एकांत चित्तरखि,
नास्तिकादि मत एम सकन मिथ्यात्वस्वरूप लखि । हरिहरादि सबही कुदेव रागादिचिह्नयुत, ___ त्यागि, भजहु सर्वज्ञदेव रागादिदोषच्युत ॥ संसारहेतु मिथ्यात्व इम त्यागि सुदर्शन जे धरें। तै जीव अमितगति शीघ्रही भागचन्द शिवतिय वरें।
इत्युपासकाचारे चतुर्थः परिच्छेदः । इस प्रकार श्री अमितगति आचार्यकृत श्रावकाचारविर्षे
चतुर्थ परिच्छेद समाप्त भया ।