Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचम परिच्छेद
[११५
यत्र नास्ति यतिवर्गसंगमो, यत्र नास्ति गुरुदेवपूजनम् । यत्र संयमविनाशि भाजनं, यत्र संसजति जीवभक्षणम् ॥४१॥ यत्र सर्वशुभकर्मवर्जनं यत्र सास्ति गमनागमकिया। तत्र दोषनिलये दिनात्थये, धर्मकर्मकुशला न भुञ्जते ॥४२॥
__अर्थ-जा विष राक्षस पिशाचनिका संचार होय हैं, अर जा विर्षे जीवनिका सम्ह न देखिए है, अर जा विर्षे छोड्या भी वस्तु भक्षण करिए है अर जा विर्षे घोर अन्धकार फैले है ॥४०॥ .
अर जा विर्षे यतीनके समूहका संगम नाही, अर जाविर्षे गुरु देवका पूजन नांही, अर जाविषं संयम का करनेवाला भोजन होय है अर जाविर्षे जीवनका भक्षण उपजै है ॥४१॥
___ अर जा विर्षे सर्व शुभ कर्मका वर्जन होय है, अर जा विर्षे गमनागमन क्रिया नांही है। ऐसा दोषनिका ठिकाना दिनका अभाव रूप रात्रि ताविर्षे धर्म कर्म में प्रवीण पुरुष हैं ते भोजन न करै है ॥४२॥
भुजते निशि दुराशया यके, गृद्धिदोषवशतिनो जनाः । भूतराक्षसपिशाच शाकिनी,
संगतिः कथभमीभिरस्य ॥४३॥ अर्थ–जे दुष्टचित्त लोलुपतारूप दोषके वशीभूत जन रात्रि विर्षे भोजन करै हैं तिन करि भूत राक्षस पिशाच शाकिनीकी संगति कैसे त्यागिए है।
भावार्थ-रात्रिभोजन करै हैं तिनके भूतादिककी संगति अवश्य होय है ॥४३॥ बल्भते दिननिशीथयोः सदाः, यो निरस्तयमसयमक्रियः । शृगपुच्छशफसंगजितो, भण्यतेपशुरयं मनीषीभिः ॥४४॥ ___ अर्थ-जो पुरुष दूर करी है यम, संयम, क्रिया जानें ऐसा रात्रि दिन विर्षे सदा खाय है सो यह पंडितनि करि सीग पूछ रहित पशु कहिए है ॥४४॥