Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
प्राश्लिष्टास्तेऽखिलैर्दोषैः, कामकोपभयादिभिः । श्रायुधप्रमदा भूषाकमण्डल्वा दियोगतः ॥७३॥
- ब्रह्मादिक हैं ते कामक्रोधमय इत्यादिक समस्त दोषनि करि युक्त हैं, जातें आयुध स्त्री आभूषण कमण्डल इत्यादि सहित हैं ।। ७३ ।।
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द्वेषमायुधसंग्रहः ।
प्रमदा भाषते कामं, प्रक्षसूत्रादिक मोहं, शौचाभावं कमंडलुः ॥ ७४ ॥
अर्थ - स्त्री तौ कामकौं कहै है अर आयुधका धारण द्वेषभावकों जनावै है अर माला यज्ञोपवीतादिक मोहकौं दिखावै है अर पवित्रपनेंके अभावक कमण्डलु दिखावै है |
भावार्थ - जो कामादिक विकार न होय तौ स्त्री आदि काहेकौं राखै, तातें स्त्री आदि हैं ते कामादिविकारनिकौं ब्रह्मादिकनिमैं प्रगट दिखावै है ऐसा जानना ॥७४॥
आगे पुरुषाद्वैतवादी कहै है ताका निषेध कर हैपरमः पुरुषो नित्य:, सर्वदोषैरपाकृतः । तस्मैतेऽवयवाः सर्वे, रागद्वेषादिभाजिनः ॥७५॥
नवाधिरोचते भाषा, विचारोद्यतचेतसाम् । afrasarवानां हि, नीरागोऽवयवी कुतः । ७६ ।
अर्थ - परवादी कहै हैं जो पुरुष नित्य है सो सर्व दोषनि करि रहित है वहुरित ये ब्रह्मादिक सर्व अंग हैं ते रागद्वेष भजने वाले हैं ।।७५।।
ताकू आचार्य कहै है - यह वाणी विचार विषै उद्यमी है चित्त जिनके ऐसे पुरुषनकौं नहीं रुचै है, जातै अंगनिकै रागीपना होते अंगी वीतराग कैसे होय ॥७६॥
आगे वैशेषिक लोकका कर्त्ता ईश्वरकों माने हैं ताका निषेध करें है । तहां वह अपना पक्ष कहै है