Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
View full book text
________________
७२]
श्री अमितगति श्रावकाचार
सम्यक्त्वोत्तमभूषणोऽमितगतिद्धत्ते व्रतं यस्त्रिधा,
भुक्त्वा भोगपरम्परानुपमां गच्छत्यसौ निर्वृत्तिम् । सर्वापापनिदूषिणीमपम नां चिंतामणि सेवते,
यः पुण्याभरणाचितः स लभते पूतां न कां संपदम् ॥८६॥
अर्थ-सम्यक्त्व है उत्तम आभूषण जाकै अर अमितगति कहिए न जानी जाय है महिमा जाको ऐसा जो जीव मन वचन काय करि व्रतकौं धारण करै है सो उपमारहित भोगनिको परम्पराकौं भोग करि मोक्षकौं प्राप्त होय हैं, जो पुण्य आभरण करि अजित पुण्योदय सहित पुरुष सर्व दरिद्रको नाश करनेवाली चिंतामणिकौं सेवै है सो कौन पवित्र सम्पदाकौं न पावै है ? पावै हो है ॥८६॥
ऐसे सम्यग्दर्शनके विषय सप्ततत्व सम्यक्त्वके अंगका इहां तांई निरूपण किया।
छप्पय
वीतराग सर्वज्ञ कहे जीवादि तत्व इम, करि प्रतीति वसु अंगसहित अति होय अचल जिम । यह कारण व्यवहार कार्य प्रातम लखि लीजे, षठ द्रव्यनितें भिन्न नियति सम्यक रस पीजे ॥ इस विना विफल अवगम चरण, अंकविना विदी यथा। ता सहित सार सुख भोग फिर, होय अमितगति सर्वथा ॥
इत्युपासकाचारे तृतीयः परिच्छेदः । ऐसें श्री अमितगति प्राचार्यकृत श्रवकाचारविर्षे
तृतीय परिच्छेद समाप्त भया ।