Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
असंख्या वनाकाभुशे, कालस्य परमाणवः । एकैका वर्तनाकार्या, मुक्ता इव व्यवस्थिताः ॥३४॥
अर्थ-लोकाकाशविर्षे वर्तना हैं कार्यलक्षण जिनका ऐसे असंख्याते कालके परमागु एक एक न्यारे न्यारे मुक्ताफलनिकी ज्यौं तिष्ठं हैं ।
भावार्थ-वर्तना हे लक्षण जिनका ऐसे असंख्याते कालाणू भिन्न लोकविर्षे तिष्ठे हैं सो तो निश्चयकाल है। अर अन्य द्रव्यनिके पर्यायकरि समयादिभेद करिए सो व्यवहारकाल है ऐसा जानना ॥३४॥
जीवितं मरणं सौख्यं, दुखं कर्वति पुद्गलाः । अणुस्कंधविभेदेन, विकल्पद्वयभागिनः ॥३५॥
अर्थ-पुद्गल जे हैं ते जीना मरण सुख दुःखकौं करें हैं, कैसे हैं पुद्गल अणु स्वन्धक भेदकरि दोय भेदक भजनेवाले हैं। इहां संसारीनिके प्राणनका संयोग सो जीवन अर तिनका वियोग सो मरण अर इन्द्रियजनित सुख दुःख इन के कारण पुद्गल करें है ऐसा जानना ॥३॥
विश्वंभरा जलं छाया, चतुरिंद्रियगोचराः । कर्माणि परमाणुश्च, षड्विधः पुद्गलो मतः ॥३६॥ स्थूलस्थूलमिदं स्थूलं, स्थूलसूक्ष्म जिनेश्वरः ।
सूक्ष्मस्थूलं मतं सूक्ष्म, सूक्ष्मसूक्ष्मं यथाक्रमम् ॥३७॥ अर्थ- पृथ्वी, जल, छाया, च्यार इंद्रियनिके विषय अर कर्म, अर परमा] ऐसे छह प्रकार पूदगल द्रव्य कह्या है ॥३६॥
बहुरि जिनेश्चरनिरि यथाक्रम कहिए पृथ्वी तो स्थूलस्थूल, अर जल स्थूल, अर छाया स्थूलसूक्ष्म, अर नेत्र विना चरिंद्रियक विषय सूक्ष्मस्थूल, अर कार्माण वर्गणा सूक्ष्म, अर परमा सूक्ष्मसूक्ष्म कह्या है ॥३७॥
ऐसे अजीव तत्वका वर्णन क्यिा; आगें आस्रवतत्वकौं कहै हैंयद्वाक्काय मनः कर्म, योगोस्वास्त्रवः स्मृतः । कर्मास्त्रवत्यनेनेति, शब्दश.स्त्रविशारदः ॥३८॥ अर्थ-जो वचन काय मन इनका कर्म वाहिये चलना सो योग है