Book Title: Amitgati Shravakachar
Author(s): Amitgati Aacharya, Bhagchand Pandit, Shreyanssagar
Publisher: Bharatvarshiya Anekant Vidwat Parishad
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श्री अमितगति श्रावकाचार
सो मिथ्यादृष्टि है। बहरि आसादन जो विराधन ता सहित वत्त सो सासादन है सम्यग्दृष्टि जाकै सो सासादन सम्यग्दृष्टि है अथवा आसादन कहिए सम्यक्त्वका विराधन ता सहित जो वर्तमान सो सासादन सम्यग्दृष्टि है, बहुरि पूर्व भया था सम्यक्त्व तिस न्याय करि इहां सम्यग्दृष्टिपना जानना । बहुरि सम्यक्त्व अर मिथ्यात्वका मिलाप भाव सो मिश्र है । बहुरि सम्यक् कहिये समीचीन है दृष्टि कहिए तत्त्वार्थ श्रद्धान जाके सोई सम्यग्दृष्टि, अर सोही अविरत कहिये असंयमी सो अविरत सम्यग्दृष्टि है । बहुरि देशतः कहिए एक देशतें है विरत कहिए संयमी सो देश विरत है संयम असंयम करि मिच्या भाव है । इहांतें ऊपरि सर्व गुणस्थानवर्ती संयमी ही हैं, बहरि प्रमाद्यति कहिए प्रमाद कर सो प्रमत्त है, बहुरि प्रमाद न करै सो अप्रमत्त है, बहुरि अपूर्व है करण कहिए परिणाम जाके सो अपूर्वकरण है बहुरि न पाइये है निवृत्ति कहिये. विशेष रूप करण कहिए परिणाम जाके सो अनिवृत्तिकरण है, बहुरि हूक्ष्म है सांपराय कहिए लोभ कषाय जाकै सो सूक्ष्म सांपराय है; बहुरि उपशांत भया है मोह जाका सो उपशांत मोह है; बहुरि क्षीण भया है मोह जाका सो क्षीणमोह है; बहरि घातिकर्मनिकौं जीतता भया सो जिन बहुरि केवलज्ञान है जाके सो केवली, सोई केवली सोही जिन, बहुरि योग करि सहित सो सयोग सोही सयोगकेवली जिन है; बहरि योग जाकै न होय मो योगी नांही सो अयोगी सोही केवली जिन सो अयोग केवली जिन हैं। ऐसे मिथ्या दृष्टि आदि अयोगी वे वली जिन पर्यंत चौदह गुणस्थान जानना। इहां ग्रन्थ बढ़नेके भयतें नामका अर्थ मात्र स्वरूप कह्या विशेष अन्य आगमतें जानना। ऐसें जीवतत्वका वर्णन किया, आगें अजीवतत्वका वर्णन कर हैं
धर्माधर्मनभः कालपुद्गलाः परिकोत्तित: ।
अजीवाः पंच सूत्र रुपयोगविवर्जिताः ॥२६॥ अर्थ- सूत्रके जाननेवाले नर धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य पुद्गलद्रव्य ये पांच, उपयोग जो दर्शन ज्ञान ताकरि रहित अजीव कहै हैं ।।२६।।
अमूर्ती निष्क्रिया नित्याश्चत्वारो गदिता जिनैः । रूपगन्धरसस्पर्शराब्दवन्तोऽत्र पुद्गलाः ॥३०॥